Boondi की वो मशहूर रबड़ी जिसे खाने फ्रांस, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया से खींचे चले आते हैं लोग, जानें क्यों है इतनी मशहूर
बूंदी न्यूज़ डेस्क, बूंदी की रबड़ी लच्छेदार होने की वजह से यह रबड़ी अपने आप में स्वाद से भरपूर होती है. सबसे खास बात यह है कि दूध से बनी इस रबड़ी में शुगर बहुत कम होती है, जिसके चलते लोग बड़े चाव से इस रबड़ी को खाते हैं. तारीफ किए बगैर नहीं रहते. हालांकि, इस रबड़ी की सबसे खास बात यह है कि यह रोजाना तैयार की जाती है. बूंदी सहित आसपास के लोग ताजा और शुद्ध होने की वजह से इसे पहले पसंद करते हैं. पुराने शहर के भीतर मौजूद इन दुकानों में देसी विदेशी पर्यटक भी इस रबड़ी का स्वाद लेने के लिए खुद ब खुद पहुंच जाते हैं.
गर्मी में बढ़ जाती है रबड़ी की डिमांड
इस रबड़ी को बूंदी में 100 साल से अधिक समय से बनाया जा रहा है. गर्मी के दिनों में इस रबड़ी की मांग और भी अधिक बढ़ जाती है. लेकिन, जब दिवाली का समय होता है तो लोग अपने घरों में मेहमानों के लिए रबड़ी लेकर जाते हैं. मिठाई के रूप में उन्हें रबड़ी परोसी जाती है.
ऑर्डर पर तैयारी की जाती है रबड़ी
इस व्यवसाय से जुड़े मृदुल जैन ने बताया, "मैंने यह काम अपने पापा से सीखा है. हमारे दादाजी के पापा इस काम को किया करते थे, और यह काम पीढ़ी दर पीढ़ी करते चले आ रहे हैं. हम रोज 10 किलो रबड़ी दुकान के लिए तैयार करते हैं. अन्य रबड़ी केवल ऑर्डर पर तैयारी की जाती है. कम शक्कर और शुगर होने की वजह से लोग इसे ज्यादा खाना पसंद करते हैं." लोग कहते हैं कि बूंदी में रहकर अगर गाडमल बाबूलाल की लच्छेदार रबड़ी नहीं खाई तो कुछ नहीं खाया.
रबड़ी बनने में लगता है घंटों का समय
गाडमल मिठाई की दुकान पुरानी बूंदी में है. दुकानदान मृदुला जैने बताया, "लच्छेदार रबड़ी को बनाने के लिए घंटों समय लगता है. 10 किलो रबड़ी हम प्रतिदिन बनाते हैं. दुकान के बाहर भट्टी में दूध के बड़े-बड़े कढ़ाह में दूध को पकाया जाता है और रबड़ी को बनाया जाता है. 2 किलो दूध में 1 किलो रबड़ी बनती है. 1 किलो दूध में आधा किलो दूध का लच्छा बनता है, जिसे बाद में रबड़ी में मिला दिया जाता है. लच्छेदार रबड़ी बनाने में सबसे महत्वपूर्ण दूध का ताजा और शुद्ध होना और इसकी पकाई अच्छी होने पर ही यह बनती है."
लोग बर्फ डालकर रबड़ी खाते हैं
मृदुल बताते हैं कि दीपावली पर बूंदी की लच्छेदार रबड़ी की डिमांड बढ़ जाती है, सबसे अधिक डिमांड इसकी गर्मियों में होती है. लोग बर्फ डालकर रबड़ी को खाते हैं, इस रबड़ी को हम पैकिंग और नॉर्मल दोने में ग्राहक को देते हैं. महंगाई की वजह से यह रबड़ी 500 किलो रुपए तक पहुंच गई है. हमारे पूर्वजों ने रबड़ी का एक दोना अठन्नी-चवन्नी में बेचा था जो आज एक दोना 50 रुपए तक पहुंच गया है.
लोगों को रबड़ी खूब पसंद है.
बूंदी के लोगों को रबड़ी खूब पसंद है.
रबड़ी का 100 साल से अधिक पुराना इतिहास
बूंदी इंटेक से जुड़े राजकुमार दाधीच ने बताया, "रबड़ी बूंदी में पिछले 100 साल से अधिक समय से बनाई जा रही है. मैं, मेरे दादा और पिताजी से राबड़ी के बारे में किस्से सुना करता था. मैंने जब रबड़ी खाना शुरू किया तो 5 रुपए का एक दोना मिलता था. अब एक दोना 50 रुपए का हो गया है. पर्यटन नगरी बूंदी को छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है."
भांग खाने के बाद खाते हैं रबड़ी
यहां पर पग पग पर शिवालय मौजूद है. पुरानी परंपराओं के अनुसार, शिवालियों में रबड़ी का भोग लगाया जाता था. ऐसे में बूंदी के इन दो परिवारों ने शुद्ध रबड़ी बनाना शुरू किया, उसे समय से यह प्रज्वलन शुरू हुआ जो आज तक भी जारी है. बूंदी के जानकार पुरुषोत्तम पारीक और महेश जैन ने बताया कि छोटी काशी बूंदी में लोग ठंडई प्रेमी हैं. भांग का शौक रखते हैं. ऐसे में भांग का सेवन करने के बाद मीठा खाना पसंद करते हैं, इस लच्छेदार रबड़ी को खाते हैं. हमारे परिवार में रिश्तेदारों में हम समय-समय पर बूंदी की लच्छेदार रबड़ी भेजते रहे हैं."
लोग बोले-ऐसी रबड़ी कहीं नहीं देखी
गाडमल की दुकान पर लच्छेदार रबड़ी खाने के लिए आए ग्राहकों ने बताया कि ऐसी रबड़ी खाने को कहीं पर भी नहीं मिली. युवक शुभ दाधीच, मेहुल, विक्रम सिंह, तपन कुमार ने बताया कि हम कई राज्यों में घूम कर आ गए, रबड़ी मिलती जरूर है. लेकिन, उसमें आर्टिफिशियल स्वाद डाल दिया जाता है. या फिर शक्कर की मात्रा अधिक होती है, जिसकी वजह से हमें वह रबड़ी अच्छी नहीं लगती, जब भी बूंदी आना होता है तो इस रबड़ी के स्वाद के वजह से खुद-ब-खुद हम इस दुकान पर खाने के लिए पहुंच जाते हैं. किसी ने एक दोना खाया तो बार-बार खाने का मन करता है. बूंदी में फ्रांस, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया सहित यूरोप कंट्री की बड़ी संख्या में देश विदेशी पर्यटक आते हैं जो भी इस रबड़ी को इस रबड़ी का स्वाद लेते हैं और अपने कमरे में कैद कर वतन ले जाते हैं.