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Bundi में धन के लालच में खोद डाला प्राचीन गिरी दुर्ग, कार्रवाई की मांग

 
Bundi में धन के लालच में खोद डाला प्राचीन गिरी दुर्ग, कार्रवाई की मांग 

बूंदी न्यूज़ डेस्क, बूंदी क्षेत्र के दो पठारों पर 12 वीं शताब्दी से पहले बने गिरी दुर्ग का अस्तित्व खतरे में है। गीरगढ़ व शाहगढ़ नाम से पहचान बनाने वाले इन दुर्गों को जमीन में गड़े धन के लालच में लोगों ने जगह-जगह से खोद दिया। वे अभी भी खुदाई कर रहे है। इनका निर्माण बूंदी रियासत की स्थापना से पहले हुआ था। दोनों दुर्गों के बीच दो किलोमीटर की दूरी है। सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण रहे इन ऐतिहासिक धरोहरों का जि₹ आज तक इतिहास की किताबों से दूर रहा है। अरावली व विंध्य पहाडिय़ों के दुर्गम कालदां के घने जंगलों में स्थित गीरगढ़ का दुर्ग काफ ी ऊंचे पठार है। इस कारण यहआम लोगों की पहुंच से दूर रहा है। यहां या तो चरवाहे या फिर धन के लालच में खोदने वाले लोग ही पहुंच पाए है। लालची आसपास के ग्रामीणों ने भी केवल इन दुर्गों का नाम ही सुना है। यहां तक जाने के लिए दुुर्गम रास्ते होने से उनकी पहुंच संभव नहीं हो सकी है। शाहगढ़ का दुर्ग बिशनपुरा के निकट एक पठार पर स्थित है, जो तीन परकोटों व चार सैनिक चौकियों से संरक्षित किया गया था।

केवल पत्थरों से बने है दुर्ग

दोनों पहाड़ी दुर्गो को बनाने में केवल पत्थरों का उपयोग किया गया है। कहीं पर भी चूने या ईटों का उपयोग नहीं हुआ है। ये इन्हें अति प्रचीन धरोहर सिद्ध करते है। बाहरी परकोटे की चौड़ाई आठ फ ीट से भी अधिक है। मुख्य दरवाजे व बुर्जों की चिनाई भी बड़े-बड़े चौकर पत्थरों से की गई है, जो हजारों साल बाद भी अपना अस्तित्व बचाए हुए है।

पांच देवियों के मंदिर की स्थापना

दोनों पहाड़ी दुर्गो को बनाने के दौरान ही पहाड़ी तथा तलहटी क्षेत्र में 5 देवियों के स्थान की स्थापना की गई थी। ये सदियों से क्षेत्र के लोगों के लिए श्रद्धा का केंद्र बने हुए हैं। इनमें पहाड़ी चोटी पर स्थित कालदां चौथ माता, हींगलाज देवी, खजूरी माता, झरोली माता तथा बूंदी संस्थापक राव देवा हाड़ा के पिता बंगाराव के नाम पर बांगामाता के रूप में आज भी पूजी जाती है।