रमजान के अंतिम जुमे को कहते हैं खास नाम से, जानें क्यों होती है 27वीं रात अहम?

बीकानेर न्यूज़ डेस्क - दीन-ए-इस्लाम में रमजान के महीने को रहमतों और बरकतों से भरपूर माना जाता है। यह महीना इबादत, संयम और अल्लाह की रजा हासिल करने का बेहतरीन मौका होता है। इस महीने की 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं और 29वीं रातों को शब-ए-कद्र कहा जाता है। इन सभी रातों में से 27वीं रात को सबसे पवित्र माना जाता है और इसे 'लैल-तुल-कद्र' भी कहा जाता है। रमजान महीने के आखिरी शुक्रवार को जुमा-तुल-विदा के रूप में मनाया जाता है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार इन दोनों दिनों को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है और दुनिया भर के मुसलमान इन दिनों को विशेष प्रार्थनाओं, दुआओं, अपने गुनाहों की माफी और अल्लाह की रजा हासिल करने में बिताते हैं।
शब-ए-कद्र - एक हजार रातों से बेहतर रात...
शब-ए-कद्र को इस्लाम में सबसे पवित्र रातों में से एक माना जाता है। कुरान में इसे एक हजार रातों में सबसे बेहतरीन रात बताया गया है। इस रात फरिश्ते धरती पर उतरते हैं और अल्लाह की रहमत बरसती है। माना जाता है कि इसी रात कुरान का अवतरण होना शुरू हुआ था। शब-ए-कद्र पर मुसलमान खास तौर पर नमाज, कुरान की तिलावत, दुआ और अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगने में समय बिताते हैं। इस रात कई खास इबादतें भी की जाती हैं। रात में की जाने वाली खास इबादतें
1- नफ्ल नमाज- लोग रात भर खास इबादतें करते हैं और अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं।
2- कुरान की तिलावत- कहा जाता है कि इस रात कुरान पढ़ना बहुत सवाब वाला होता है। इसलिए शब-ए-कद्र का एक हिस्सा कुरान की तिलावत में गुजारा जाता है।
3- तस्बीह और जिक्र यानी खुदा की तारीफ- इस दौरान जितना हो सके सुब्हान अल्लाह, अल्हम्दुलिल्लाह और अल्लाहु अकबर का जिक्र किया जाता है। यह तस्बीह पूरी रात पढ़ी जाती है।
4-दुआएं- इस रात मुसलमान अपनी खुशहाली और पूरी दुनिया की शांति और गुनाहों की माफी के लिए दुआ करते हैं।
इन सब बातों के अलावा 27वीं शब-ए-कद्र को कुरान मुकम्मल होता है। एक महीने तक तरावीह की नमाज में कुरान पढ़ने वाले हाफिज, साल भर मस्जिद में नमाज पढ़ाने वाले मौलाना और मस्जिद के मुअज्जिन का भी सम्मान किया जाता है। उन्हें नमाज़े-ओ-नमाज़े पेश किए जाते हैं।
जुमा-तुल-विदा यानी रमजान महीने का आखिरी शुक्रवार...
रमजान महीने के आखिरी शुक्रवार को जुमा-तुल-विदा कहते हैं। जुमा-तुल-विदा यानी अलविदाई जुमा। यह दिन रमजान के पूरे होने की सूचना भी देता है। यह दिन मुसलमानों के लिए बहुत अहम दिन होता है। इस दिन की खासियत यह है कि इसे बड़ी नेकियों का दिन माना जाता है।
आम शुक्रवारों से अलग इस अलविदाई शुक्रवार को खुदा की खास रहमत और रहमत का दिन माना जाता है। इस दिन मस्जिदों में नमाजियों की भारी भीड़ होती है और वे जुमा-तुल-विदा की नमाज के बाद नफ्ल नमाज भी अदा करते हैं। इसके अलावा लोग रमजान के महीने में दी जाने वाली जकात और फितरा को जरूरतमंदों में बांटकर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होने की कोशिश करते हैं ताकि वे भी ईद-उल-फितर का त्योहार खुशी-खुशी मना सकें।