Aapka Rajasthan

Bikaner खेजड़ी से सांगरी तोड़ जीवन यापन करने वाले परिवारों को नुकसान

 
Bikaner खेजड़ी से सांगरी तोड़ जीवन यापन करने वाले परिवारों को नुकसान
बीकानेर न्यूज़ डेस्क, बीकानेर फरवरी-मार्च में ठंडक और कम तापमान रहने और अब मई-जून में भीषण गर्मी के मौसमी उलटफेर ने इंसान के साथ पेड़-पौधों पर कड़ा प्रहार किया है। इस प्रतिकूलता का असर वनस्पतियों में खासतौर पर खेजड़ी पर देखने को मिला है। फरवरी-मार्च में तापमान 25 से 30 डिग्री रहा, जबकि खेजड़ी के पेड़ पर लगे फलों के सांगरी की फलियां में तब्दील होने के लिए उच्च तापमान की जरूरत होती है।

क्या कहते हैं वैज्ञानिक

कृषि वैज्ञानिक डॉ. इंद्र मोहन वर्मा के मुताबिक खेजड़ी के वृक्ष पर सांगरी से पहले उसके फूल यानी मिंजर के पनपने के लिए करीब 40 से 42 डिग्री के तापमान की आवश्यकता होती है। इस बार कम तापमान रहने से खेजड़ी के पेड़ों पर फूल ही नहीं पनपे। पेड़ मॉल फॉर्मेशन के शिकार हो गए और कीड़े लग गए। ज्यादातर पेड़ों पर गिरवड़े यानी गांठे पड़ गईं, तो कुछ पेड़ हरे भरे जरूर दिखते हैं, लेकिन सांगरी और गांठे दोनों ही नहीं हैं। इसके चलते राजस्थान के कई जिलों में सांगरी तोड़कर अपने परिवार का पालन पोषण करने वाले निराश है।

खराब हाल में है राजस्थान का स्टेट वर्क

सांगरी तोड़ने का काम आजीविका के राजस्थान स्टेट वर्क के नाम से भी मशहूर है, लेकिन मौसम के बदलाव ने बीकानेर ,फलोदी ,जैसलमेर ,नागौर, जोधपुर, सीकर ,झुंझुनूं जैसे सांगरी उत्पादन के जिलों में इस पर निर्भर लोगों की रोजी-रोटी ठप्प हो गई है। इन जिलों से होकर सड़क या रेल मार्ग से आवागमन करने वाले लोग और पर्यटक भी यहां से सांगरी खरीद कर ले जाते है। खासकर सड़क किनारे ढेरी लगाकर सांगरी बेचने का यहां खूब चलन है। इस बार यह नजारे मुख्य मार्गों से गायब हैं। कुछ दशक पहले तक गरीब और किसान की थाली में रही सांगरी की सब्जी अब पांच सितारा होटल और उच्च वर्ग में स्टेट्स सिम्बल वाली सब्जी बन चुकी है। बाजार में सांगरी के भाव बादाम काजू जैसे ड्राई- फ्रूटस से ज्यादा है।

देश-विदेश में भी है भारी मांग, शादियोंकी रौनक

यूं तो सांगरी की सब्जी कई तरीके से बनाई जाती सांगरी। सांगरी का अचार भी देश-विदेश में बड़े चाव से खाया जाता है । सांगरी के उत्पादन के अभाव में इस बार शौकीन लोगों को बाजार में सांगरी काफी महंगी मिलेगी। सांगरी के सामान्य भाव छ: सौ से बारह सौ प्रति किलो हैं जो कि आम आदमी की पहुंच से पहले ही बाहर हैं। वैसे भी आम आदमी सांगरी की सब्जी पारंपरिक वार- त्यौहार पर ही करने की हिम्मत कर पाता है। लेकिन इस बार बाजार में सांगरी की आवक नहीं होने से आम लोगों के लिए तो इसका स्वाद चखना काफी महंगा सौदा होगा।

हर साल होता है तकरीबन 25-30 टन सांगरी का उत्पादन

मोटे अनुमान के मुताबिक, फलोदी मार्केट में करीब 500 काश्तकारों के माध्यम से पांच टन सांगरी हर वर्ष बाजार में आती है। वहीं नागौर से करीब 10 टन सांगरी बाजार में पहुंचती है। पूरे प्रदेश में करीब 25 से 30 टन सांगरी का उत्पादन हर वर्ष होता है।