तीन दशक से अधूरा समाधान: पुरानी गिन्नाणी से निगम तक पानी निकासी की व्यवस्था हर बार फेल, उल्टा बढ़ रहा जलभराव
शहर के सबसे पुराने और भीड़भाड़ वाले इलाकों में शामिल पुरानी गिन्नाणी से लेकर नगर निगम क्षेत्र तक पानी की निकासी की समस्या पिछले तीन दशकों से जस की तस बनी हुई है। नगर निगम के अभियंताओं की ओर से बार-बार नया प्लान बनाकर पानी को बाहर निकालने की कोशिश की गई, लेकिन हर बार उल्टा परिणाम सामने आया। नतीजा यह है कि जहां जल निकासी की व्यवस्था बेहतर होनी चाहिए, वहीं जलभराव की समस्या और गंभीर रूप लेती जा रही है।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि निगम के इंजीनियर हर बार नई योजना के साथ आते हैं—कहीं पाइपलाइन बदली जाती है, कहीं ढलान मापने का काम किया जाता है, तो कहीं नाले को चौड़ा करने की कवायद। लेकिन परिणाम हमेशा उल्टा ही नजर आया। लोगों का तंज है कि “पता नहीं किस इंजीनियरिंग और किस उपकरण से ढलान मापी जा रही है, क्योंकि पानी निकलने की जगह और ज्यादा जमा होता है।”
पुरानी गिन्नाणी से आने वाला वर्षाजल, घरों का डिस्चार्ज और सड़क का गंदा पानी नगर निगम ऑफिस की ओर बहता है। यहां से पानी को आगे निकालने के लिए नाले और ड्रेनेज लाइनें बनाई गई थीं, लेकिन वे क्षमता के अनुसार काम नहीं कर पा रहीं। कई जगह पाइपलाइनें ऊंची-नीची ढलान में बिछी हुई हैं, जिससे पानी रुक जाता है और विपरीत दिशा में वापस चढ़ने लगता है। यही कारण है कि मामूली बारिश में भी इलाके में घुटनों तक पानी भरने की स्थिति बन जाती है।
निवासियों का आरोप है कि नगर निगम ने कभी भी ढलान का वैज्ञानिक सर्वे नहीं करवाया। “तीन दशक से करोड़ों रुपये खर्च कर दिए, लेकिन नतीजा आज भी शून्य है,” स्थानीय व्यापारी वर्ग का कहना है। उनका कहना है कि सड़कें टूटती हैं, खुदाई बार-बार होती है, लेकिन सुविधाएं वहीं की वहीं खड़ी हैं।
सूत्र बताते हैं कि कई अभियंता अपने-अपने तरीके से ढलान मापकर पाइपलाइन डालते चले गए, लेकिन किसी भी योजना में एकरूपता या तकनीकी मानक नहीं अपनाए गए। यही वजह है कि किसी जगह पाइपलाइन ऊपर है और किसी जगह नीचे, जिससे पूरा सिस्टम असंतुलित हो गया है।
नगर निगम अधिकारियों का कहना है कि पानी निकासी की समस्या पुरानी है और इसे स्थायी रूप से हल करने के लिए नए मास्टर प्लान की जरूरत है। उन्होंने स्वीकार किया कि पुराने ढांचे में लगातार जोड़-तोड़ से समस्या और बढ़ी है। अब निगम एक विस्तृत टेक्निकल सर्वे कराने की तैयारी में है, जिसके बाद इलाके की पूरी ढलान, पाइपलाइन स्तर, नालों की गहराई और प्रवाह क्षमता का वैज्ञानिक आकलन किया जाएगा।
हालांकि स्थानीय लोग इन आश्वासनों को लेकर आशंकित हैं। उनका कहना है कि हर साल नई घोषणा होती है, लेकिन बारिश आते ही हालात वैसे ही बिगड़ते हैं। जलभराव से न केवल व्यापार प्रभावित होता है, बल्कि गंदे पानी से बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। कई बार तो पानी निगम परिसर में तक भर चुका है, जो प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है।
फिलहाल निगम की ओर से नए सर्वे और सुधारात्मक कार्यों के निर्देश जारी किए गए हैं, लेकिन लोगों को तब तक भरोसा नहीं है जब तक स्थिति जमीन पर बदलते हुए न दिखे। तीन दशक की असफल इंजीनियरिंग ने शहरवासियों का विश्वास पहले ही कमजोर कर दिया है।
