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Bikaner बिना साज के ही वातावरण में गूंजती हैं मांगलिक गीतों की सुर-लहरियां

 
Bikaner बिना साज के ही वातावरण में गूंजती हैं मांगलिक गीतों की सुर-लहरियां

बीकानेर न्यूज़ डेस्क, बीकानेर पारंपरिक गीत हमारे लोक जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। गीतों के बोल, इनकी कर्णप्रिय मिठास, लय और ताल तथा जिस अवसर पर इनका गायन होता है, उस दौरान बनने वाला माहौल गीतों की मधुरता को और बढ़ा देता है। पारंपरिक मांगलिक गीत वर्षों से आमजन के तन-मन में रचे-बसे हैं। मांगलिक रस्मों की पहचान बने हुए हैं। ऐसे ही लोकप्रिय और प्राचीन है पुष्करणा समाज में विवाह संस्कार की मांगलिक रस्मों के दौरान गाए जाने वाले पारंपरिक गीत। शताब्दियों से ये मांगलिक गीत एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्वत: पहुंच रहे हैं। इनके बोल, राग और मांगलिक रस्में भी तय हैं। अनेक मांगलिक गीत उस रस्म की पहचान बन चुके हैं। किसी महिला या पुरुष की ओर से गीत के गुनगुनाते ही उस मांगलिक रस्म की तस्वीरें मन-मस्तिष्क में घूमने लगती हैं।

इन मांगलिक कार्यों में होता है गीतों का गायन

भगवान गणेश, इष्टदेव, पितर, विनायक, घोड़ी, सुहाग, बन्ना, बनड़ी, बीरा, बन्नी री विदाई, बधावौ, जंवाई रा गीत, बरनो, डरपो मती, पीठी, लखदख, अटाळ, छींकी, खिरोड़ा, बन्ने री निकासी, मिलणी, ताळोटो, कवळा, फेरा, सेवरलो, बरी, केसरियो लाड़ो, सगा-सगी सहित अनेक मांगलिक गीत हैं, जो विवाह की रस्मों के दौरान गाए जाते हैं। बिना किसी वाद्य यंत्र के महिलाएं पारंपरिक गीतों का गायन करती हैं।

मगरे रा मूंग मंगाओ ऐ

पुष्करणा समाज में होने वाले विवाह के दौरान हाथधान की रस्म से मांगलिक रस्में प्रारंभ होती है। पीठी, लखदख, अटाळ सहित अनेक रस्में होती हैं। इस दौरान ‘मगरे रा मूंग मंगाओ ऐ, म्हारी पीठी चढ़ावों ऐ’‘ लख ले लख ले हो लाडलडा’, दूल्हे के अपने ससुराल पहुंचने पर पोखने की रस्म के दौरान गाए जाने वाले ताळोटा में ‘ हर आयो हर आयो, काशी रो वासी आयो’, ‘ सात सुपारयों लाडो सिंघाडा रो सटको’, ‘वर आयो वर आयो’, मायरा की रस्म के दौरान ‘बीरा रमक झमक हुय आयज्यो’, बरी के दौरान ‘ मेहंदी मोळी नख जावतरी तो केसर पुडा बंधावो ए ’, फेरा रस्म के दौरान ‘ अबै बाई ने पैलो फेरो’, बहन के विवाह के दौरान भाई की ओर से दिए जाने वाले सेवरलों के दौरान ‘बीरो बाई नै सेवरलो भल दीजौ’ मांगलिक गीतों का गायन होता है। खिरोडा, छींकी, यज्ञोपवीत संस्कार आदि के दौरान भी गीत गाए जाते हैं।

लोक जीवन में रचे बसे

पुष्करणा समाज की मांगलिक रस्मों सगाई, खोळा, प्रसाद, मिलणी, टीकी, बनावा, यज्ञोपवीत संस्कार, गणेश परिक्रमा, हाथधान, मायरा, खिरोड़ा, बारात, दूल्हे को पोखना, वर-वधू के फेरे, जान, बरी सहित अनेक रस्मों के दौरान होने वाले मांगलिक गीत लोक जीवन में रचे बसे हैं। मांगलिक गीत पुस्तक ‘आपणा गीत’ की संग्रहकर्ता सुधा आचार्य के अनुसार ये मांगलिक गीत पारंपरिक मांगलिक रस्मों की पहचान हैं। इनके गायन के बिना रस्मों के निर्वहन की कल्पना नहीं की जा सकती। इन गीतों की अपनी लय, ताल और गायन शैली है। वर्षों से इनके गायन की परंपरा है। गीतों के गायन के दौरान सगे-संबंधियों का आपसी प्रेम, अपनत्व और घनिष्ठता देखते ही बनती है। अधिकांशत: महिलाएं ही गीतों का गायन करती हैं। अनेक अवसरों पर पुरुष भी गीतों का गायन करते हैं।