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Bikaner अर्जुनदेव चारण ने कहा- शास्त्रीय ज्ञान से बेहतर है राजस्थानी लोक साहित्य का ज्ञान

 
Bikaner अर्जुनदेव चारण ने कहा- शास्त्रीय ज्ञान से बेहतर है राजस्थानी लोक साहित्य का ज्ञान

बीकानेर न्यूज़ डेस्क, बीकानेर कालबोध की दृष्टि से राजस्थानी साहित्य को मौखिक एवं लिखित दो अलग-अलग रूपों में परिभाषित किया जाता है। इस दृष्टि से राजस्थानी मध्यकालीन गद्य विधाएं मौखिक साहित्य से जुड़ी हुई हैं, क्योकि मध्यकालीन गद्य कहने की एक अनूठी कला रही है। राजस्थानी लोक साहित्य का ज्ञान शास्त्रीय ज्ञान से ज्यादा श्रेष्ठ एवं विशाल है।यह विचार कवि-आलोचक प्रोफेसर अर्जुनदेव चारण ने साहित्य अकादेमी एवं श्री नेहरू शारदा पीठ पीजी महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को आयोजित 'मध्यकालीन राजस्थानी गद्य परम्परा' विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद में अध्यक्षीय उदबोधन में व्यक्त किए।उन्होंने कहा कि लोक साहित्य का सृजन सप्तऋषियों ने किया था। जिसे लोक ने सहज रूप से स्वीकार किया, जो अपने आप में अद्भुत है। राष्ट्रीय परिसंवाद संयोजक डॉ. प्रशांत बिस्सा ने बताया कि उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित विद्वान डॉ. लक्ष्मीकांत व्यास थे। व्यास ने कहा कि मध्यकालीन राजस्थानी गद्य परम्परा एक समृद्ध एवं अनूठी परम्परा है। जिसे आधुनिक गद्य का आधार स्तंभ कहा जा सकता है। इस अवसर पर उन्होंने मध्यकालीन जैन संतों की गद्य रचनाओं की विवेचना करते हुए बालावबोध का महत्व उजागर किया।

उदघाटन समारोह कवि-आलोचक डॉ. अर्जुनदेव चारण एवं मधु आचार्य का नेहरू शारदापीठ संस्थान द्वारा अभिनंदन किया गया। प्रारम्भ में अतिथियों ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलित किया गया। संगोष्ठी संयोजक डॉ. प्रशांत बिस्सा ने स्वागत उदबोधन प्रस्तुत किया। उदघाटन सत्र का संचालन डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने किया।प्रथम तकनीकी सत्र डॉ. गीता सामौर की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। प्रथम सत्र में श्रीमती संतोष चौधरी ने मध्यकालीन राजस्थानी बात साहित्य एवं डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने मध्यकालीन राजस्थानी विगत साहित्य विषयक आलोचनात्मक पत्र प्रस्तुत किये।द्वितीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता कवि-आलोचकडॉ. गजेसिंह राजपुरोहित ने की।

इस सत्र में डॉ. सत्यनारायण सोनी ने मध्यकालीन राजस्थानी ख्यात साहित्य एवं डॉ. नमामी शंकर आचार्य ने मध्यकालीन राजस्थानी वारता साहित्य विषयक आलोचनात्मक शोध पत्र प्रस्तुत किये।राष्ट्रीय परिसंवाद का समापन समारोह के मुख्य अतिथि मदन सैनी ने थे। उन्होंने कहा की मध्यकालीन राजस्थानी गद्य परम्परा हमारी अनमोल धरोहर है। जालौर महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.​​​​​​​ अर्जुनसिंह उज्जवल ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि राजस्थानी में युवाओं का भविष्य सुरक्षित है। इसलिए ही आज का युवा राजस्थानी भाषा साहित्य के प्रति मन से समर्पित होकर सृजन कर रहा है। अंत में डॉ.प्रशांत बिस्सा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इससे पहले शनिवार को राजस्थानी भाषा ओर अनुवाद विषय पर एक दिवसीय सिंपोजियम आयोजित हुआ था।