राजस्थान में अनूठी होली की परंपरा! जब जिंदा व्यक्ति को अर्थी पर ले जाते है लोग, जानिए 425 साल पुरानी इस परंपरा का रहस्य

भीलवाड़ा न्यूज़ डेस्क - कपड़ा नगरी भीलवाड़ा शुक्रवार को शीतला सप्तमी पर रंगों से सराबोर रही। रियासत काल से ही भीलवाड़ा में होली के 7 दिन बाद रंगों का त्योहार मनाया जाता है। सुबह से ही लोगों ने शहर भर में रंग और गुलाल उड़ाकर रंगों का त्योहार मनाया। दोपहर बाद भीलवाड़ा शहर के मुख्य चौराहों पर होली का हुड़दंग देखने को मिला। जगह-जगह युवाओं ने डीजे की धुन पर होली खेली। बच्चों की टोलियां घूम-घूम कर रंगों के त्योहार का लुत्फ उठाती रहीं। इस बीच शाम को शहर में शव यात्रा निकाली गई। शव यात्रा गुलाल और रंगों के साथ मुख्य बाजार से निकाली गई। शव यात्रा में पुराने भीलवाड़ा शहर से हजारों लोग शामिल हुए। नवविवाहितों ने शव यात्रा के दौरान मृत व्यक्ति से आशीर्वाद लिया।
425 साल से चली आ रही है यह परंपरा
यह एक ऐसी परंपरा है जिसमें जीवित व्यक्ति को अर्थी पर लिटाया जाता है और गाजे-बाजे और रंग उड़ाते हुए उसकी शव यात्रा निकाली जाती है। उसके बाद एक निश्चित स्थान पर उसका अंतिम संस्कार किया जाता है. लेकिन उससे पहले अर्थी पर लेटा युवक वहां से कूदकर भाग जाता है. मुर्दे की सवारी की यह परंपरा कपड़ा नगरी भीलवाड़ा में शीतला अष्टमी पर पिछले 425 सालों से निभाई जा रही है.
महिलाओं का प्रवेश वर्जित
होली के 8 दिन बाद यह जुलूस निकाला जाता है, जो शहर के चित्तौड़गढ़ हवेली से शुरू होता है. जहां एक युवक को अर्थी पर लिटाया जाता है और फिर ढोल-नगाड़ों के साथ मुर्दे की सवारी शुरू होती है. शवयात्रा में अर्थी पर बैठा व्यक्ति कभी उठकर बैठता है, कभी उसका एक हाथ बाहर निकलता है तो कभी लेटकर पानी पीता है. इस जुलूस में शहर के साथ-साथ आसपास के जिलों से भी लोग आते हैं और रंग-गुलाल उड़ाते हुए आगे बढ़ते हैं. इस दौरान यहां अपशब्दों का प्रयोग किया जाता है. जिसके चलते इस जुलूस में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है. यह जुलूस रेलवे स्टेशन चौराहा, गोल प्याऊ चौराहा, भीमगंज थाना होते हुए बड़ा मंदिर पहुंचता है. वहां पहुंचते ही अर्थी पर लेटा युवक नीचे कूदकर भाग जाता है और प्रतीक स्वरूप अर्थी का दाह संस्कार बड़ा मंदिर के पीछे कर दिया जाता है।
क्यों मनाई जाती है होली? धुलंडी से 7 दिन बाद मनाई जाती है होली
पंडितों के अनुसार मेवाड़ में धुलंडी के स्थान पर अलग-अलग दिन रंगों का त्योहार होली खेलने की परंपरा है। पूर्व में धुलंडी के दिन मेवाड़ राजघराने के एक राजपरिवार के सदस्य की मृत्यु हो गई थी। पंडित अशोक व्यास बताते हैं कि इसी कारण से मेवाड़ में धुलंडी को रंगों के त्योहार का ओख (शोक) मानते हुए धुलंडी के बाद के 13 दिनों में से किसी एक दिन होली खेली जाने लगी।नगर व्यास राजेंद्र कुमार बताते हैं कि पूर्व में धुलंडी से तेरस तक लगातार 13 दिन होली खेलने की परंपरा रही है। यही कारण है कि भीलवाड़ा में होली शीतला सप्तमी को मनाई जाती है। जहाजपुर और गंगापुर में रंग पंचमी पर रंग खेला जाता है। मंडल में रंग तेरस खेली जाती है जो होली के 13 दिन बाद आती है। मंडल कस्बे में रंग तेरस पर होली खेलने की परंपरा है।