Bharatpur दोनों ही दलों में बढ़रहा परिवारवाद, फिर टिकट के दावेदार

भरतपुर न्यूज़ डेस्क, भरतपुर चुनावी शंखनाद फुंक गया है। अगले माह आचार संहिता की बेडिय़ां जनप्रतिनिधियों को जकड़ लेंगी, लेकिन इससे पहले जिले में वंशवाद की बेल खूब फलती-फूलती नजर आ रही है। यूं तो दोनों ही दल इससे किनारा करने की बात कहते आए हैं, लेकिन असल में दोनों ही परिवारवाद के मोह में फंसे नजर आ रहे हैं। सत्ताधारी दल के नेताओं ने गांव की सरकार में ‘अपनों’ की भागीदारी बढ़ा दी। वहीं विपक्ष भी कोई मौका छोड़ता नजर नहीं आ रहा। भाजपा और कांग्रेस को जिले में बारी-बारी से सत्ता पर काबिज होने का मौका मिलता रहा है। इस बीच दोनों ही दलों ने अपनों को आगे बढ़ाने के लिए पूरी ताकत झोंकी है। अब चुनावी आहट के साथ ही जनप्रतिनिधियों के ‘अपने’ टिकट की दौड़ में हैं।
इससे दोनों ही दलों के कार्यकर्ता कई बार टिकट की दौड़ में पिछड़ जाते हैं। इससे वह मन मसोसकर रह जाते हैं। ऐसा नहीं है कि दोनों ही दलों के आलाकमान इससे वाकिफ नहीं हों, लेकिन सत्ता को साधने की जुगत में सब कुछ संभव हो पा रहा है। वंशवाद के आगे हारने के कारण कार्यकर्ता खुद को ठगा सा महसूस करते हैं, लेकिन लगभग सभी पार्टियां लाख मना करने के बाद भी आखिर नेताओं के परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती नजर आती हैं। यही वजह है कि वंशवाद की बेल उखड़ने की बजाय फलती-फूलती ही जा रही है। समस्या का समाधान नहीं निकल रहा है।