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Bharatpur संतुलित पोषण के अभाव के कारण राज्य में 39 प्रतिशत बच्चे बौने रह जाते, कुछ की मौते

 
Bharatpur संतुलित पोषण के अभाव के कारण राज्य में 39 प्रतिशत बच्चे बौने रह जाते, कुछ की मौते

भरतपुर न्यूज़ डेस्क, भरतपुर सितम्बर माह को वर्ष 2018 से राष्ट्रीय पोषण माह के रुप में मनाया जाता है। लेकिन हम पोषण के प्रति कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर वर्ष राज्य में 0 से एक वर्ष तक के एक हजार बच्चों में से कुपोषण के कारण 35 बच्चों की मौत हो गई। यह दर शहरी क्षेत्रों में 38 और ग्रामीण क्षेत्रों में 25 है। इसका मुख्य कारण कुपोषण माना गया है। भारत सरकार की ओर से सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम की ओर से जारी बुलेटिन के अनुसार राजस्थान में 0 से 1 वर्ष के बच्चों की मृत्युदर प्रति 1000 बच्चों पर 35 है। जबकि राष्ट्रीय औसत 33 है। राज्य में 39.1 प्रतिशत बच्चे कम कद के पैदा होते हैं। 23 प्रतिशत निर्बल एवं 36.7 प्रतिशत बच्चों में कम वजन होता है। राज्य में जन्म के एक घंटे में सिर्फ 28.4 प्रतिशत बच्चों को ही मां का पहला दूध मिल पाता है। मानव पोषण में खाने के साथ-साथ जल का भी महत्वपूर्ण स्थान है। भरतपुर की सुजानगंगा नहर के दूषित जल से अन्य जल श्रोत भी दूषित हो जाते हैं तथा डेंगू, मलेरिया, दस्त, डायरिया व आंत संबंधी रोग पनपते हैं।

किसी भी देश के लिए वहां के नागरिकों का अच्छा स्वास्थ्य प्रमुख पूंजी है तथा अच्छे स्वास्थ्य के लिए पोषण प्रमुख कारक है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 116 देशों में भारत का 107 वां स्थान है। इसका मतलब है कि हमारे देश में सम्पूर्ण जनसंख्या के लिए संतुलित पोषण उपलब्ध नहीं है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2019-21 में पांच वर्ष से कम उम्र के 35.5 प्रतिशत बच्चे बौनेपन से पीडि़त थे तथा 32.1 प्रतिशत बच्चों का वजन औसत से कम था। 6 से 59 माह के बच्चों में एनीमिया की दर वर्ष 2015-16 में 58.6 प्रतिशत से बढक़र वर्ष 2020-21 में 67.1 प्रतिशत हो गई। मानव पूंजी सूचकांक में भारत 180 देशों में 161वें स्थान पर है। इस सूचकांक में ज्ञान, कौशल व स्वास्थ्य को शामिल किया जाता है।

कृषि महाविद्यालय कुम्हेर के डीन डॉ. उदय भान सिंह के अनुसार इसका कारण प्रसवपूर्व देखभाल, इष्टतम स्तनपान व संतुलित पोषण की कमी है। गरीबी के कारण यहां के लोग भोजन में पर्याप्त दूध, दाल, फल व सब्जी शामिल नहीं कर पाते। बदलती भोजन आदतें भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। आज की नई पीढी फास्टफूड एवं बाजार के भोजन को ज्यादा इस्तेमाल करती है। गर्भवती महिलाओं, बच्चों व लडकियों में आइरन व केल्सियम की कमी है। 40 वर्ष की उम्र के बाद लोगों की हड्डियां कमजोर हो रही हैं। मध्यम वर्ग में भोजन में कटौती करके दिखावे की प्रवृति बढ़ रही है। हमें यथासम्भव भोजन व शिक्षा के खर्चों में कटौती नहीं करनी चाहिए। गर्भवती महिलाओं के शरीर में दूसरी जान पल रही होती है। इसीलिए उन्हें भरपूर सुपाच्च भोजन उपलब्ध कराएं। बच्चों के शरीर का आकार बढता है। उन्हें भरपूर प्रोटीन व मिनरलयुक्त आहार दें। साथ ही भोजन की स्वच्छता का ध्यान रखें। मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ नागरिक ही देश को महान बनाते हैं।
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