भरतपुर की मशरूम से किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी, 20 साल के ईश्वर से 50+ किसानों तक की सफलता
राजस्थान के भरतपुर जिले में मशरूम की खेती ने पारंपरिक खेती पर निर्भर किसानों के लिए नई राह खोली है। युवा उद्यमी ईश्वर (आयु 20 वर्ष) की पहल से अब तक 50 से अधिक किसानों की आर्थिक हालत सुधरी है। ईश्वर ने स्थानीय किसानों को मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण और बाज़ार से जोड़कर उनकी आमदनी ध्यान देने योग्य बढ़ाई है।
मशरूम खेती — पारंपरिक खेती से अलग
पारंपरिक फसलों की खेती जैसे गेहूं, चना या सरसों की तुलना में मशरूम की खेती ज़्यादा कम ज़मीन और कम संसाधन मांगती है। इसके अलावा, मशरूम जल्दी तैयार हो जाता है और हर मौसम में उत्पादित किया जा सकता है।
ईश्वर ने प्रदेश के अन्य गांवों के किसानों को मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दिया — उन्हें स्पॉन (मशरूम के बीज), बैग तैयार करना, वेंटिलेशन और रख-रखाव जैसी बारीकियाँ सिखाईं। धीरे-धीरे 50 से अधिक किसानों ने मशरूम की खेती शुरू की।
आमदनी में सुधार — किसान खुश
ईश्वर का कहना है कि मशरूम की खेती से किसानों को रोज़गार के साथ-साथ बेहतर रिटर्न भी मिल रहा है। पारंपरिक फसल के बजाय यह खेती कम लागत और कम समय में ज्यादा लाभ देती है।
कुछ किसानों ने शुरुआती वर्ष में ही देखा कि मशरूम बेचने से उनकी आमदनी दोगुनी हो गई। कई परिवारों ने खेती के अतिरिक्त रोजगार नहीं मिलने की वजह से परेशानी झेली थी — लेकिन मशरूम उत्पादन ने उन्हें आत्मनिर्भर बना दिया।
बाजार व निर्यात मार्ग — भरतपुर से विदेश तक
इस पहल की खास बात यह है कि केवल लोकल बाजार ही नहीं, बल्कि मशरूम को आगे वैल्यू-एडेड उत्पाद (जैसे पाउडर, सूप, पैक्ड मशरूम) में बदला जा रहा है और बाहरी राज्यों व महानगरों तक पहुँचाया जा रहा है।
ऐसे उदाहरण अन्य राज्यों में मिले हैं — जहाँ मशरूम की खेती से घरेलू बाजार के साथ-साथ एक्सपोर्ट की भी बातें हो रही हैं।
अगर भरतपुर के किसान भी इसी तरह मशरूम उत्पादन + वैल्यू एडिशन + मार्केटिंग मॉडल अपनाते हैं, तो उनकी कमाई में और वृद्धि संभव है।
किसानों का उत्साह और भविष्य की संभावनाएं
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किसान अब पारंपरिक फसल का भरोसा कम कर मशरूम को स्थायी आय का स्रोत मान रहे हैं।
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युवा ईश्वर जैसे उत्साही व्यक्ति किसानों के लिए रोल मॉडल बने हैं — उन्होंने दिखाया कि कम संसाधन में भी खेती को लाभकारी बनाया जा सकता है।
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अगर राज्य सरकार और कृषि विभाग मशरूम के उत्पादन व मार्केटिंग के लिए सपोर्ट दें — जैसे प्रशिक्षण, सब्सिडी, बेहतर बाजार — तो यह खेती राजस्थान में और फैल सकती है।
हालाँकि अब तक भरतपुर में मशरूम की खेती छोटे स्तर पर ही हो रही है, लेकिन ईश्वर की पहल और किसानों की मेहनत ने यह दिखा दिया है कि बदलते कृषि परिदृश्य में नए विकल्प कितने महत्वपूर्ण हो सकते हैं। यदि इस तरह की खेती को व्यापक स्तर पर अपनाया जाए, तो राजस्थान के कई जिलों में खेती + रोज़गार + आर्थिक स्थिरता — तीनों हासिल हो सकते हैं।
