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OMG! राजस्थान के इस मेले में भगवान नही भूतों को चढ़ाया जाता है प्रसाद, वर्षं पुरानी इस परंपरा का रहस्य जान उड़ जाएंगे होश

 
OMG! राजस्थान में इस जगह भगवान नही भूतों को चढ़ाया जाता है प्रसाद, वर्षं पुरानी इस परंपरा का रहस्य जान उड़ जाएंगे होश 

बाड़मेर के लाखेटा गाँव में हर साल लाखा भूत की कथा पर आधारित मेला लगता है, जहाँ शिव मंदिर के पास लाखा भूत की पूजा की जाती है। यह मेला मारवाड़ी संस्कृति, लोक नृत्य और लोक आस्था का अद्भुत संगम है, जिसे देखने के लिए हज़ारों लोग उमड़ते हैं।

भूतों का मेला
राजस्थान के बाड़मेर ज़िले की सिवाना विधानसभा के अंतर्गत आने वाली समदड़ी तहसील के प्रसिद्ध लाखेटा गाँव में इन दिनों गैर नृत्य मेला अपने पूरे शबाब पर है। क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों से लेकर प्रशासनिक अधिकारी तक, सभी इस आयोजन में शामिल हो रहे हैं। राजस्थानी (मारवाड़ी) संस्कृति के संरक्षण और विस्तार में इस मेले की भूमिका विशेष मानी जाती है। इस वर्ष के आयोजन की विशेषताएँ और मान्यताएँ इसे और भी ख़ास बना रही हैं।

पौराणिक मान्यता और ऐतिहासिक कथा
स्थानीय मान्यता के अनुसार, प्राचीन काल में इस क्षेत्र में लाखा नामक एक भूत का व्यापक प्रभाव और आतंक था। चारों ओर उसका भय व्याप्त था, जिसके कारण ग्रामीण जीवन अस्त-व्यस्त था। उस समय संतोष भारती महाराज गाँव के तालाब के तटबंध के पास स्थित शिव मंदिर में तपस्या कर रहे थे। ग्रामीणों की पीड़ा देखकर उन्होंने उन्हें प्रेतबाधा से मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया और शिव आराधना में लीन हो गए।

आतंक का अंत
कई वर्षों की कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव की कृपा से लाखा प्रेत का आतंक समाप्त हो गया। लेकिन अपने अंतिम क्षणों में लाखा ने महाराज से मोक्ष प्राप्ति का वरदान माँगा था, जिसे संतोष भारती महाराज ने स्वीकार कर लिया और लाखा की माँग मान ली। इसी कारण उस दिन के बाद से पूरे क्षेत्र में परंपरा के रूप में मेले का आयोजन होने लगा। यह मेला आज भी पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है।

इसी भूत 'लाखा' के नाम पर गाँव का नाम 'लखेता' पड़ा। आज भी इस मेले में मारवाड़ी परंपरा के अनुसार लोक नृत्य और विभिन्न सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। मेला समिति विजेता टीमों को सम्मानित करती है। साथ ही, सरकारी प्रतिनिधि और स्थानीय प्रशासन भी इस आयोजन को भव्य और यादगार बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। परिणामस्वरूप, पूरे जिले से हजारों लोग इस मेले को देखने आते हैं।

दो साल से स्थगित था मेला
पिछले दो साल कोविड-19 के कारण मेला स्थगित कर दिया गया था, लेकिन इस बार मेले की वापसी से गाँव में काफी उत्साह और उमंग देखी गई। ग्रामीणों से लेकर अधिकारी और आयोजन समिति तक, सभी इस मेले को सफल और ऐतिहासिक बनाने में लगे हुए हैं।

आस्था का केंद्र
तालाब के तटबंध के ऊपरी हिस्से में स्थित शिव मंदिर के पास लाखा भूत का मंदिर बना है। यहाँ भक्त पहले शिवलिंग की पूजा करते हैं और फिर लाखा भूत को प्रसाद चढ़ाते हैं। मान्यता है कि इस विधि से उनकी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। मेले के दौरान बनने वाले प्रसाद का पहला भोग भी लाखा भूत को ही लगाया जाता है।