Barmer Loksabha Election 2024 Result लोकसभा चुनावों की मतगणना में भाजपा कांग्रेस से इतने वोट आगे या कांग्रेस भाजपा से इतनी आगे या ये कैंडिडेट इससे इतना आगे
बाड़मेर न्यूज़ डेस्क, राजस्थान की बाड़मेर लोकसभा सीट पर दूसरे चरण में 26 अप्रैल को वोटिंग हुई. राजस्थान की अन्य लोकसभा सीटों की तरह ही इस सीट पर भी वोट प्रतिशत में कमी आई. इस सीट पर इस बार 69.79 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. जबकि साल 2019 के चुनावों में इस सीट पर 73.30 फीसदी वोट पड़े थे. यहां पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस पार्टी के उम्मेदाराम बेनीवाल और निर्दलीय प्रत्याशी रविंद्र भाटी के बीच रहा. बीजेपी के निवर्तमान सांसद कैलाश चौधरी ने भी अपनी कड़ी चुनौती पेश की. आज वोटों की काउंटिंग हो रही है.
सबसे पहले पोस्टल बैलेट की गिनती हो रही है. शुरुआती रुझानों में बाड़मेर में पोस्टल बैलेट की गिनती में 9 बजे तक रविंद्र भाटी आगे थे और केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी पीछे चल रहे हैं. अब 9 बजकर 19 मिनट पर उम्मेदा राम बेनीवाल आगे चल रहे हैं. राजस्थान का यह सबसे बड़ा जिला शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है. हालांकि 2014 और 2019 के चुनावों में यहां से बीजेपी के प्रत्याशी जीतते आ रहे हैं. साल 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह निर्दलीय चुनाव लड़े थे लेकिन बीजेपी के सोना राम से हार गए थे. इस चुनाव में सोनाराम को चार लाख 88 हजार वोट मिले थे. जबकि 2019 के चुनावों में मुख्य मुकाबला बीजेपी केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी और कांग्रेस के मानवेंद्र सिंह के बीच था.
मोदी लहर का हुआ असर
पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह को पांच लाख 22 हजार वोट मिले थे. जबकि कैलाश चौधरी 8 लाख 46 हजार वोट पाकर 3 लाख 23 हजार वोटों से जीत गए थे. साल 1977 और 1989 के चुनाव को छोड़ दिया जाए तो 1967 से 1999 तक इस सीट पर हर बार कांग्रेस को विजय मिली है. पहली बार 2004 में यह सीट मानवेंद्र सिंह ने ही जीत कर बीजेपी के झोली में डाली थी. उसके बाद यहां 2014 में आई मोदी लहर में बीजेपी के प्रत्याशी जीते थे. इस सीट पर पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ था. उस समय स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में महाराज भवानी सिंह यहां से सांसद चुने गए थे. 57 के चुनाव में भी स्वतंत्र उम्मीदवार रघुनाथ सिंह बहादुर यहां से सांसद चुने गए. 1962 में यह सीट राम राज्य परिषद के तन सिंह ने जीत ली और पहली बार 1967 में यह सीट कांग्रेस की झोली में गिरी.