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Barmer हीरागढ़ सेक्टर में 198 नमक खदानों के लिए 841 बीघा जमीन की चिन्हित, सरकार ने दी मंजूरी

 
Barmer हीरागढ़ सेक्टर में 198 नमक खदानों के लिए 841 बीघा जमीन की चिन्हित, सरकार ने दी मंजूरी 

बाड़मेर न्यूज़ डेस्क, बाड़मेर पचपदरा में रिफाइनरी का काम शुरू होने के बाद तोड़ी गई 198 नमक खदानों को विस्थापित करने के लिए राज्य सरकार ने पिछले बजट सत्र में नमक उत्पादकों को बड़ी राहत दी है। सरकार ने प्रभावित 198 नमक खदानों को लगभग साढ़े तीन करोड़ रुपये बढ़ाकर पूर्व के मापदण्डों पर चिन्हित भूमि में स्थानांतरित करने के निर्देश दिये हैं. यह भुगतान खनिकों को 13 फीट के आधार पर 3 किस्तों में किया जाएगा। हीरागढ़ सेक्टर में चिन्हित भूमि पर खदानों को फिर से खोलने से सदियों से पारंपरिक नमक उत्पादन में लगी नमक उत्पादक संस्था (खरवाल) के लोगों को रोजगार मिलेगा। पिछले केंद्र में यूपीए सरकार के दौरान खदानों के बंद होने के दस साल बाद इन खदानों को पुनर्जीवित किया जाएगा, बजट सत्र में इसकी घोषणा से खारवाल समुदाय को मजबूती मिली है.

वर्ष 2013-14 में जब रिफाइनरी का काम शुरू हुआ तो रिफाइनरी की परिधि में आने वाली 198 नमक की खदानें धराशायी हो गईं। इसके बाद से नमक उत्पादक लगातार विरोध करता रहा और अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाता रहा। इस पर वर्ष 2018 में तत्कालीन जिलाधिकारी की अध्यक्षता में समिति गठित कर प्रभावित खदानों की पैमाइश कर अन्य स्थान पर स्थानांतरित करने के आदेश दिये गये. सरकार ने हीरागढ़ सेक्टर में माइंस शिफ्टिंग के लिए 841 बीघा जमीन चिन्हित की थी, लेकिन माइंस शिफ्टिंग के लिए सहायता नहीं मिलने के कारण काम अटका हुआ था. अब गहलोत सरकार ने पिछले बजट में प्रभावित 198 नमक खदानों को विस्थापित करने के लिए पूर्व में स्वीकृत राशि 5 करोड़ 14 लाख 20493 को बढ़ाकर 7 करोड़ 85 लाख 49 हजार 395 रुपये कर दी है.

साल 2013-14 में तत्कालीन यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने रिफाइनरी का शिलान्यास किया था। इस दौरान रिफाइनरी के लिए 12034.10 बीघा जमीन ट्रांसफर की गई। इसमें रिफाइनरी की परिधि में आने वाली 198 खदानों को ग्राउंड कर दिया गया। इन खदानों के मालिकों ने रोजगार छिनने का विरोध किया। फिर उन्हें दूसरे स्थान पर जमीन आवंटित कर खदानें तैयार करने का आदेश दिया गया, लेकिन अब तक जमीन का आवंटन नहीं होने के कारण खदानें तैयार नहीं हो सकी हैं। ऐसे में सैकड़ों परिवार 10 साल से बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं।

ब्रिटिश काल में मारवाड़ क्षेत्र में एकमात्र नमक उद्योग विकसित था। स्थानीय नमक की मांग पर ब्रिटिश सरकार ने सांभर में गेस्ट हाउस, कोषागार और चौकी बनवाई थी। जगह-जगह बनी चौकियों में नमक की खदानों पर पहरेदार नजर रखते थे। तत्कालीन सरकार नमक उत्पादकों से एडवांस वसूलती थी। इसके बाद यहां से बनने वाले नमक को असम, बंगाल सहित अन्य राज्यों और विदेशों में भेजा जाता था। यहां से मिलने वाली राशि कोषागार से नमक उत्पादकों को दी जाती थी। नमक परिवहन के स्थान पर रेलवे लाइन बिछाई गई, जहाँ से मालगाड़ियों में नमक लादा जाता था। रिफाइनरी का काम पूरा होने के बाद यहां 400 से ज्यादा जैव उत्पाद कारखाने खुलेंगे। ऐसे में यदि सरकार पारंपरिक नमक उद्योग को विशेष प्रोत्साहन देकर काम शुरू करे तो यहां का नमक अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस पा सकेगा। नमक की खदानों को विस्थापित करने के लिए बजट आवंटन अच्छी पहल है, लेकिन इसके साथ ही हीरागढ़ सेक्टर में मूलभूत सुविधाओं का विस्तार किया जाए। हजारों करोड़ की लागत से बनी रिफाइनरी से कई जैव उत्पाद के कारखाने खुलने से उद्योगों का विकास होगा। ऐसे में राज्य सरकार को नमक उत्पादन क्षेत्र को विकसित करने के लिए हीरागढ़ सेक्टर में सड़क, पानी, बिजली जैसी सुविधाओं का विस्तार करना चाहिए।