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राजस्थान के इस जिले में अनोखी होली! रंगों से खेलने की बजाय दहकते अंगारों पर चलते है लोग, वजह जानकर खुला रह जाएगा मुंह

 
राजस्थान के इस जिले में अनोखी होली! रंगों से खेलने की बजाय दहकते अंगारों पर चलते है लोग, वजह जानकर खुला रह जाएगा मुंह 

बांसवाड़ा न्यूज़ डेस्क - राजस्थान के दक्षिणी क्षेत्र में कुछ रीति-रिवाज ऐसे हैं, जो होली के उत्साह को कई गुना बढ़ा देते हैं। ये आदिवासी समाज को उनके रीति-रिवाजों और परंपराओं से जोड़े रखते हैं। वागड़ क्षेत्र में अलग-अलग जगहों पर ऐसे कई रीति-रिवाज निभाए जाते हैं। चाहे वो एक-दूसरे को जलती लकड़ियों से पीटना हो, अंगारों पर चलना हो या फिर पेड़ से बंधे कपड़े को हटाना हो। आदिवासी क्षेत्र की अनूठी होली एक अलग ही अंदाज बयां करती है। डूंगरपुर के कोकापुर गांव में रंग खेलने से पहले एक अनूठी परंपरा निभाई जाती है। होली दहन के दूसरे दिन सूर्योदय से पहले अंगारों पर चलने की परंपरा है। इसके बाद गेर नृत्य किया जाता है।

पत्थर और लाठियां फेंककर मनाई जाती है होली
डूंगरपुर के भीलूड़ा और सागवाड़ा में पत्थर और लाठियां फेंककर होली मनाने की परंपरा है। भीलूड़ा में धुलंडी के दिन रघुनाथ मंदिर के पास पत्थर की राड़ खेली जाती है। सागवाड़ा शहर में धुलंडी के अगले दिन से पंचम तक लोग अलग-अलग मोहल्लों में कांडो राड़ खेलते हैं। 

एक दूसरे पर फेंकी जाती हैं जली हुई लकड़ियां
बांसवाड़ा के घाटोल में होली दहन और होली का जश्न अनोखे अंदाज में मनाया जाता है। सुबह चार बजे होलिका दहन के बाद बांसफोड़ समुदाय के लोग होली की आधी जली हुई लकड़ियों को डेढ़ फीट के टुकड़ों में काटते हैं। सुबह सात बजे दो टोलियां बनाकर लकड़ियों को एक दूसरे पर फेंका जाता है।

फूतरा पंचमी पर शौर्य का प्रदर्शन
डूंगरपुर जिले के ओबरी गांव में होली के पांचवें दिन फूतरा पंचमी मनाई जाती है। यह रस्म मुख्य रूप से ब्राह्मण, राजपूत और पाटीदार समुदाय मिलकर निभाते हैं। इसमें ब्राह्मण समुदाय की ओर से गांव के खुले स्थान पर सबसे ऊंचे खजूर के पेड़ पर सफेद कपड़ा (फूतरा) बांधा जाता है।दोपहर में मेला लगने के बाद गांव और तीनों समुदाय के युवा और अन्य लोग टोलियों में एकत्रित होकर ढोल-नगाड़ों के साथ फूतरा बांधने वाले स्थान पर पहुंचते हैं। जहां राजपूत समुदाय के युवा खजूर के पेड़ पर चढ़कर सफेद कपड़ा (फूतरा) उतारने की कोशिश करते हैं। और ब्राह्मण और पाटीदार समाज के युवा उन्हें रोकने की कोशिश करते हैं। डूंगरपुर के चौरासी क्षेत्र में एकम से त्रयोदशी तक भाचरिया, ढेचरा मसूर, ढेचरा भगत, मालाखोलडा, झरनी, डुनका, पुनावदा गांवों में लगने वाले इन मेलों में फुटरा छोड़ने की परंपरा है।

पहले अंगारों पर चलना और फिर गुलाल उड़ाना
डूंगरपुर के कोकापुर गांव में रंग खेलने से पहले एक अनूठी परंपरा निभाई जाती है। होली जलने के बाद दूसरे दिन सूर्योदय से पहले अंगारों पर चलने की परंपरा है। इसके लिए गेर नृत्य किया जाता है।