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Banswara हड़ताल पर ठेकाकर्मी, मोबाइल वैटेनरी सेवाएं ठप

 
Banswara हड़ताल पर ठेकाकर्मी, मोबाइल वैटेनरी सेवाएं ठप
बांसवाड़ा न्यूज़ डेस्क, बांसवाड़ा पशुपालन विभाग की जिले में ठेके पर संचालित 17 मोबाइल वैटेनरी इकाइयों की सेवाएं दो दिन से ठप हैं। जरूरत पर अवकाश और आधा-अधूरा वेतन भी समय पर नहीं मिलने की परेशानी पर तकाजे के जवाब में धमकियों से आहत मोबाइल टीमें वाहनों को थाना परिसरों में खड़े कर घर पर बैठ गई हैं। ताज्जुब यह कि इसे लेकर ठेकाकर्मियों ने गुहार भी की, लेकिन जयपुर मुख्यालय से ठेके के चलते यहां कुछ कर पाने से विभागीय अधिकारियों ने बेबसी जाहिर की। इस पर कुछ कार्मिकों ने इस संबंध में जिला प्रशासन और फिर क्षेत्रीय सांसद तक अपनी पीड़ा पहुंचाई है। गौरतलब है कि इसके अंदेशे पर जनवरी प्रथम सप्ताह में 7 तारीख को ही  हैल्पलेस 1962 : मवेशियों के इलाज के प्रबंध बेअसर शीर्षक से प्रमुखता से समाचार प्रकाशित किया था।

इसलिए थानों मेंखड़ी की गाड़ियां

हर मोबाइल वैटेनरी यूनिट में शामिल डॉक्टर की सैलरी 56 हजार 100 रुपए 4 रविवार की छुट्टी के साथ है। परंतु 30 दिन काम करने के बाद भी कटौती बताकर 50 हजार 847 रुपए दिए जा रहे हैं।इसके साथ एलएसए का वेतन रविवार की छुट्टी के साथ 20 हजार रुपए तय है, लेकिन पूरा महीना ड्यूटी के बाद भी इन्हें 13 से 14 हजार के बीच राशि दी जा रही है। इसी तरह पायलट की सैलरी रविवारीय अवकाश सहित 18 हजार रुपए है, लेकिन उन्हें महीनेे भर की हाजिरी पर भी 9 से 11 हजार के मध्य वेतन दिया जा रहा है। इसे कंपनी की गलत नीति बताते हुए 27 जनवरी से 17 टीमों के रिलीवर सहित करीब 65 कार्मिकों ने अनिश्चितकाल के लिए गाडिय़ां अरथूना, लोहारिया, कलिंजरा, बागीदौरा, सज्जनगढ़ थानों, झेर चौकी, तलवाड़ा और पशुपालन विभाग बांसवाड़ा के परिसर में खड़ी कर दी और सब अपने-अपने घर बैठ गए हैं। इससे दो दिन से सेवाएं पूरी तरह ठप हैं।

गैर सरकारी संगठन कैम्प ने बांसवाड़ा-डूंगरपुर सहित प्रदेश के कई जिलों में मोबाइल वैटेनरी यूनिट संचालित करने का ठेका लिया। इसकी एवज में प्रति वेन दो लाख रुपए महीना उसे विभाग से दिए जाने का एमओयू है। फरवरी,2024 में सेवाएं शुरू करने के बाद से मनमानी कटौतियों के उपरांत कार्मिकों को वेतन मिलता रहा, लेकिन नवंबर से सरकार से पैसा नहीं मिलना बताकर वेतन अटका दिया गया गया। समाचार प्रकाशित होने के बाद एक माह का वेतन आया, तो वह भी अधूरा मिला। सवाल किया, तो कोई बताने को तैयार नहीं है कि किस बात के कितने पैसे काटे जा रहे हैं। विभागीय अधिकारियों के बाद कलक्टर और सांसद को ज्ञापन देकर कार्मिकों ने पीड़ा बताई, लेकिन आश्वासन ही मिला तो सभी हड़ताल पर उतर गए ।