Banswara बारिश के साथ ही छतों से टपकती बूंदाबांदी, तिरपाल डालकर बचाव
बांसवाड़ा न्यूज़ डेस्क, बांसवाड़ा जिले में नहरी तंत्र और सिंचाई सुविधाओं के विस्तार पर करोड़ों रुपए व्यय करने वाली माही परियोजना की माही कॉलोनी में हर दर पर खतरे व डर का साया मंडराता दिख रहा है। लंबे समय से कॉलोनी के आवासों की सुध नहीं लेने से यह समय के साथ खस्ताहाल हो रहे हैं। बारिश के दिनों में अधिकांश मकानों में पानी टपक रहा है। इनमें रहने वाले कर्मचारियों के परिवार छत पर तिरपाल ढंककर दिन गुजार रहे हैं। माही परियोजना में वर्षों पहले बने आवासों सहित निर्माण आदि कार्यों के लिए भवन खंड गठित है। इस खंड की जिम्मेदारी आवासों के रखरखाव सहित कॉलोनी में आधारभूत सुविधाएं मुहैया कराने की भी है, किंतु करीब 370 आवासों के प्रति लंबे समय से अनदेखी की जा रही है।
इसके चलते कहीं सीढ़ियां क्षतिग्रस्त हैं तो कहीं चारदीवारी। कहीं आवास का प्लास्टर उखड़ा है तो अधिकांश मकानों की छतों पर दरारें पड़ी हुई हैं। पड़ताल में कॉलोनी में निवासरत कर्मचारियों के परिजनों के अनुसार बारिश के दिनों में कॉलोनी में सबसे बड़ी समस्या छत से पानी टपकने की है। आवास काफी पुराने होने से तेज बारिश शुरू होते ही कमरों में पानी टपकना शुरू हो जाता है। कुछ माह पहले ही आवंटन के बाद यहां रह रही महिलाओं ममता व उर्मिला (बदला हुआ नाम) ने बताया कि पहली बारिश होते ही क्वार्टर की दशा सामने आ गई। घर के अंदर व बाहर पानी-पानी हो गया। जैसे-तैसे सामान को भीगने से बचाया था। उसके बाद बाजार से तिरपाल लाकर छत पर ढंका, जिससे राहत मिली। कॉलोनी में अधिकारी वर्ग के आवासों को छोड़ दें तो अधीनस्थ सहित अन्य विभागों के कर्मचारियों को आवंटित आवासों में से अधिकांश की छतों पर काले-नीले तिरपाल ढंक रखे हैं।
माही कॉलोनी के आवास आवंटन के बाद किसी भी प्रकार का कार्य कराने के लिए अधिशासी अभियंता कार्यालय से अनुमति लेने का नियम है, किंतु विगत वर्षों में इन नियमों की पालना ही नहीं हुई। आगे प्रवेश पर खुला बरामदा, भीतर दो कमरे, रसोई के बाद आवास के पिछे खुले हिस्से में छह-सात फीट ऊंची दीवार होने से असुरक्षा भी रही। कतिपय कर्मचारियों ने आवास के खुले भाग में मनमर्जी से सुरक्षा की दृष्टि से लोहे की जालियां आदि लगवाई। यहां से तबादला होने या आवास खाली कराने पर उसे खुलवा दिया। इस दौरान दीवारों से उखड़े प्लास्टर आदि की मरम्मत कराने की जहमत नहीं उठाई। अधिकारियों ने भी कार्रवाई करना उचित नहीं समझा। इसके चलते आवास खस्ताहाल हो गए।