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Banswara महंत ने कहा- श्रद्धालुओं की निःस्वार्थ भक्ति से भगवान प्रसन्न होते हैं

 
Banswara महंत ने कहा- श्रद्धालुओं की निःस्वार्थ भक्ति से भगवान प्रसन्न होते हैं

बांसवाड़ा न्यूज़ डेस्क, बांसवाड़ा छींच कस्बे में चल रहे 45 दिवसीय सवा करोड़ श्री शिव पर्थिवेश्वर शिवलिंग निर्माण अनुष्ठान के 39 वे दिन शिव पार्थिवेश्वर निर्माण के लिए उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए गुरु आश्रम छींच के महंत घनश्याम दास महाराज ने बताया कि निस्वार्थ भाव से की गई भक्ति से प्रभु अवश्य प्रसन्न होते हैं। उन्होंने कहा कि प्रभु सदैव अपने भक्तों के आस-पास ही रहते हैं। जब भी उस पर कोई विपदा आती है तो वे तत्क्षण उसकी सहायता भी करते हैं।

महाराज ने कहा कि मानव को यह जीवन बड़ी मुश्किल से मिला है। परन्तु, जन्म होने के बाद से अधिकतर लोग यह भूल जाते हैं और अपना जीवन व्यर्थ गंवा बैठते है। जिसके तहत वे अहंकार, लोभ-लालच, निदा, स्वार्थ आदि कर्मों में लिप्त हो जाते है। परंतु, व्यक्ति द्वारा किए जा रहे कर्म के अनुसार महंत श्री ने कहा कि परमात्मा उसे सुधारने के लिए संकट में डाल देते हैं। मनुष्य जैसे कर्म करता जाता है उसे वैसे ही फल देते है। जीवन में सुख पाने के लिए माता-पिता व दीन दुखियों की सेवा, सत्संग श्रवण व प्रभु का स्मरण अवश्य करना चाहिए गौरतलब है कि ब्रह्म पीठाधीश्वर महंत घनश्यामदास जी महाराज के विश्व शांति व राष्ट्र की उन्नति के महान संकल्प से युक्त यह अनुष्ठान 18 जुलाई से प्रारंभ हुआ, इस अनुष्ठान के 39 वें दिन 2 लाख से ज्यादा पार्थिव शिवलिंग का निर्माण मेवाड़, वागड़, गुजरात, मध्य प्रदेश से आए शिव भक्तों द्वारा किया गया। पंडित नरेन्द्र आचार्य ने बताया कि में वेद पाठी ब्राह्मणों पंडित अंकित त्रिवेदी, रौनक आचार्य, आशीष उपाध्याय, राजेश त्रिवेदी, मोहित त्रिवेदी, हर्षुल जोशी ने रुद्री का पाठ करते हुए अभिषेक किया।

हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र भक्त प्रह्लाद से कहा कि क्या प्रभु इस खंभे को फाड़कर प्रकट हो सकते हैं? कहा कि प्रह्लाद की भक्ति भगवान में इस कदर थी कि उसने पत्थर में भगवान को प्रकट कर दिखाया। कहा कि इसी प्रकार जीवन में मनुष्य अगर संकल्प कर ले तो किसी कार्य की पूर्ति का विकल्प भगवान दे देते हैं। श्री द्वारिकाधीश गौशाला तलवाड़ा के गौभक्त संत रघुवीरदास महाराज ने कहा कि यदि भगवान को प्राप्त करना है तो प्रेम और भक्ति का मार्ग अपनाना चाहिए। संत रघुवीरदास ने भक्ति की शक्ति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि रामायण में नौ प्रकार की भक्ति बताई गई है। मनुष्य अगर राम के स्वरूप को हृदय में उतार ले, तो उसे प्रभु की भक्ति सहज ही मिल जाती है। भगवान भक्त की रक्षा के लिये सदैव खड़े रहते हैं। सच्चे मन से यदि भक्त उन्हें याद करते हैं, तो वह नंगे पैर ही दौड़े-दौड़े क्षण भर में उसके पास पहुंच जाते हैं।