Banswara पंजाब में उग्रवाद झेलने के बाद जिला आया एक किसान और बन गया 'गुड़ किंग', बना करोड़पति
बांसवाड़ा न्यूज़ डेस्क, बांसवाड़ा राजस्थान के वागड़ इलाके में बीते 25 साल से किसान धर्मपाल सियाग की पहचान बन गया है गुड़। वे बांसवाड़ा में गन्ने की खेती करते हैं। इलाके में आस-पास शुगर मिल नहीं है, इसलिए खुद ने गुड़ बनाने की यूनिट लगाई। जल्दी ही उनका देसी गुड़ लोगों की जुबान पर चढ़ गया। धर्मपाल 400 बीघा में परंपरागत और बागवानी खेती करते हैं, इससे उन्हें सालाना एक से सवा करोड़ की इनकम होती है। इसमें से 50 बीघा पर गन्ने की खेती करते हैं। गन्ने के अलावा मक्का, चावल, आम व अन्य फलदार बागवानी खेती भी कर रहे हैं। बांसवाड़ा शहर से डूंगरपुर रोड पर 10 किमी चलने पर सुंदनपुर के पास भचड़िया गांव में किसान धर्मपाल सियाग की 400 बीघा जमीन है। 45 साल के किसान धर्मपाल अपने परिवार के साथ 1992 में पंजाब के पाकिस्तान बॉर्डर स्थित घर-जमीन को छोड़कर बांसवाड़ा आ गए थे।
धर्मपाल ने बताया- पंजाब में उन दिनों उग्रवाद चरम पर था। हमारा गांव पाकिस्तान बॉर्डर पर था। आए दिन हत्याएं हो रही थीं। हम वहां भी गन्ना समेत कई फसलों की खेती करते थे। हमारी वहां काफी जमीन थी, थोड़ी बहुत अब भी है। मैं लगभग 15 साल का था, बांसवाड़ा में हमारे एक परिचित थे। उन्होंने पिताजी से कहा कि जब तक उग्रवाद शांत न हो जाए, तब तक के लिए बांसवाड़ा आ जाओ। यहां खेती लायक जमीनें हैं। परिवार के साथ हम बांसवाड़ा आ गए। यहां की जमीन गन्ने के लिए उपयुक्त और सस्ती थीं, इसलिए बांसवाड़ा के भचड़िया गांव में एक साथ 300 बीघा जमीन खरीदी और खेती शुरू कर दी। खेती जमी तो 100 बीघा और जमीन खरीद ली।
धर्मपाल ने कहा- खेती को अगर बिजनेस की तरह किया जाए, तो इससे बेहतर आय का जरिया नहीं हो सकता। बांसवाड़ा आए तो यहां शुगर मिल की कमी खली। आज भी खलती है। इसलिए गन्ने के अलावा अन्य फसलों को भी जारी रखा। गेहूं की फसल में कुछ वर्ष से लगातार घाटा जा रहा है। इसलिए गन्ने पर अधिक फोकस कर दिया है। उन्होंने कहा- पंजाब की मिट्टी ने परंपरागत और बागवानी खेती सिखा दी थी। पुश्तों से वही काम करते आए थे। इसलिए बांसवाड़ा में खेती करके भी कामयाब हो गए। अनाज के अलावा फल, फूल भी उगाए। हमने खेत में सिर्फ सेब नहीं उगाया, बाकी केले, अंगूर, अमरुद, तरबूज, सीताफल जैसी फसलें लीं। बांसवाड़ा की मिट्टी की तासीर बहुत उपजाऊ है, यहां पानी की भी कमी नहीं, इसलिए खेती के लिए यहां बहुत स्कोप है।
गन्ने-गुड़ की फसल से मिली पहचान
धर्मपाल ने बताया- गन्ने और गुड़ से मुझे अलग पहचान मिली। हम ऑर्गेनिक गन्ना की पैदावार लेते हैं। गोबर की खाद का इस्तेमाल करते हैं। रासायनिक उर्वरक नहीं डालते। पानी की प्रचुरता के कारण गन्ने में रस भरपूर होता है। क्वालिटी भी बेहतर होती है। खेत में ही गुड़ का प्लांट भी है। हमने 1998 से गुड़ तैयार करना शुरू किया। एक दिन में 700 से 800 किलो गुड़ तैयार करते हैं। पहले दूसरे जिलों में भी गुड़ सप्लाई करते थे। अब बांसवाड़ा के मार्केट में ही सारा गुड़ खप जाता है। गुड़ यूनिट में 40 लोग काम करते हैं।
हर साल 6000 क्विंटल गन्ने का उत्पादन
धर्मपाल ने कहा- गुड़ बहुत काम का उत्पाद है। यह गरीब की मिठाई कहलाता है। मिठाई जितना नुकसानदेह भी नहीं है। गुड़ में औषधीय गुण होते हैं। खाने के अलावा यह पूजन, परंपरिक रस्मों में भी काम आता है। सर्दियों में गुड़ से बने पकवान खास होते हैं। उन्होंने बताया- हर साल 6 हजार क्विंटल गन्ने की पैदावार होती है। इससे 500 से 700 क्विंटल गुड़ तैयार होता है। बचे हुए लिक्विड गुड़ से थोड़ी शक्कर भी प्लांट में ही तैयार करता हूं। इस तरह सिर्फ गन्ने से सालाना 20 लाख तक की इनकम हो जाती है। खास बात ये है कि किसान धर्मपाल का खेत गुड़ फैक्ट्री के नाम से प्रसिद्ध हो गया है। किसान ने बताया- जमीन में अच्छा पानी, मिट्टी की अच्छी क्वालिटी और आसानी से उगाए जाने की तकनीक के कारण गन्ने की खेती मुझे पसंद है। एक बार पौध लगाने के बाद गन्ना चार साल तक उत्पादन देता है। गन्ना बढ़ने पर उसे जड़ से काट लिया जाता है। इसके बाद उसी जड़ में से नई पौध तैयार हो जाती है। इस तरह एक बार पौध रोपण करने के बाद उसी पौध से गन्ने की पैदावार मिलती रहती है।
सरकार इलाके में शुगर मिल लगाए
किसान ने कहा- बांसवाड़ा और आस-पास के इलाके में शुगर मिल नहीं है। यह कमी शुरू से खलती है। चीनी का भाव आसमान पर है। सरकार अगर बांसवाड़ा में शुगर मिल लगाए तो यहां के किसान मालामाल हो सकते हैं। यहां की मिट्टी में गन्ने की बंपर फसल ली जा सकती है। शुगर मिल हो तो गन्ना मिल में खप जाए और किसानों की आय कई गुना बढ़ सकती है। शुगर मिल दूर होने से किसानों को ट्रांसपोर्टेशन बहुत महंगा पड़ जाता है। इलाके के कई किसान धर्मपाल सियाग की देखा-देखी कई साल से गन्ना पैदा कर रहे हैं। इससे उन किसानों को भी फायदा पहुंचा और गन्ना उत्पादन में बांसवाड़ा अहम स्थान रखने लगा है। यहां उत्पादित होने वाले गन्ने की क्वालिटी अच्छी है।
उन्होंने कहा कि ऑर्गेनिक गन्ने का गुड़ होने के कारण यह 100 फीसदी शुद्ध है। हम किसी तरह का विज्ञापन नहीं करते। लेकिन व्यापारी पूछते हुए हमारे फार्म तक पहुंच जाते हैं और फिर रेगुलर गुड़ ले जाते हैं। बाजार से 10 से 15 रुपए सस्ता मिलने के कारण यह गुड़ कई साल से डिमांड में है। धर्मपाल ने बताया- बाजार में शक्कर के अपशिष्ट (टॉप) से बना गुड़ भी खपाया जा रहा है। जिन्हें गुड़ की पहचान नहीं होती वे इसका प्रयोग करते हैं। इसमें गुणवत्ता नहीं मिलती। यही कारण है कि हमारा गुड़ की इलाके में मांग है।
साल भर इन फसलों से 1.25 करोड़ इनकम
किसान धर्मपाल ने बताया- सालाना आय सभी फसलों को मिलाकर एक और सवा करोड़ के आस-पास बैठती है। हालांकि मौसम और मार्केट पर बहुत कुछ निर्भर करता है। मौसम का साथ मिले और बाजार भाव में बहुत मंदी न हो तो एक करोड़ की सालाना इनकम का आंकड़ा छू लेते हैं। इसके लिए 400 में से 200 बीघा पर गेहूं करते हैं। गेहूं की पैदावार 1400 क्विंटल तक मिल जाती है। 2300 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से सिर्फ गेहूं से 32 लाख से ज्यादा का गेहूं बिक जाता है। किसान ने बताया कि वर्तमान में 50 बीघा में मक्का, 50 बीघा में चावल, 200 बीघा में गेहूं भी लगा रखा है, इसके अलावा आम और केले के बाग हैं। सीजनल सब्जी में फूलगोभी और पत्तागोभी भी उगाते हैं। सभी का प्रोडक्शन मिलाकर सालाना आय एक-सवा करोड़ के आस-पास रहती है।
परिवार करता है खेती में सहयोग
धर्मपाल ने बताया- खेती बाड़ी में पूरा परिवार सहयोग करता है। पत्नी सुलोचना (42) बराबर सहयोग करती हैं। बड़ा बेटा पारस (24) एमकॉम है और खेती में पूरा सहयोग करता है। बेटी अनन्या (11) पढ़ाई कर रही है, सातवीं क्लास में है। एक भतीजा है जयदीप (30), वह खाद-बीज की दुकान करता है और खेती में पूरा साथ देता है। खेतों की रखवाली के लिए दो गार्ड रखे हैं। बुवाई और कटाई के वक्त खेतिहर मजदूर रख लेते हैं। जिन्हें दिहाड़ी के हिसाब से पेमेंट होता है। मकर संक्रांति पर्व करीब आ रहा है। ऐसे में घर-घर में तिल-गुड़ के व्यंजन बनाए जाने की परंपरा है। बाजार में भी गुड़ की मांग सर्दी में बढ़ जाती है। ऐसे में इन दिनों किसान धर्मपाल सियाग की गुड़ फैक्ट्री में रोजाना बंपर गुड़ तैयार किया जा रहा है।
किसान धर्मपाल ने बताया- खेत में बीज के हिसाब से गड्ढा करें। इसमें गन्ने का लबोंदा (पौधा) लगाएं। इसके बाद गोबर का खाद व अन्य खाद डालें। गन्ना लगाने के 2 सीजन होते हैं। दीपावली के आस-पास जो पौध लगाई जाती है, उसकी कटाई भी एक साल बाद दीपावली के आस-पास होती है। दूसरा सीजन वैशाख महीने का होता है। इसमें वैशाख में ही कटाई होती है। एक एकड़ में गन्ने की खेती में पहले साल करीब एक लाख रुपए की लागत आती है, इसमें 4 से लेकर 5 लाख तक की उपज हो जाती है। दूसरे साल में इसकी लागत आधी हो जाती है, क्योंकि इसमें बीज नहीं लगाना पड़ता है। एक बार में ही गन्ने का लगाया बीज लगभग 3 साल तक चलता है।