Banswara चुनावी वोटों की गिनती के बाद अंदरूनी कलह की चर्चाएं आने लगीं सामने
सूत्रों के अनुसार विधानसभा चुनाव में टिकट की घोषणा के साथ ही कतिपय दावेदारों ने अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया था। जिले में वसुंधरा राजे व शिवराजसिंह चौहान के अलावा पार्टी के किसी बड़े नेता की चुनावी सभा भी नहीं हुई, जिसका लाभ भी ऐसे लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से मिला। हालांकि भाजपा के नेता पार्टी को कार्यकर्ता आधारित और पार्टी के चिह्न को ही प्रत्याशी बताते रहे, किंतु अंदर ही अंदर खेला होता रहा और इसमें कई पदाधिकारियों की भी पर्दे के पीछे से भूमिका रही।
जीत नहीं, हराने की चिंता
भाजपा में जीत की बजाय हराने की कोशिशें हुई। इसके चलते कुछ जगह ऐसे प्रत्याशी भी बतौर निर्दलीय खड़े किए गए, जो पार्टी के खाते के वोट पाने में कामयाब रहे। कई पदाधिकारियों और जन प्रतिनिधियों ने चुनावी प्रचार के अंतिम क्षणों में भी शिथिलता बनाए रखी। यह कुशलगढ़, बांसवाड़ा और गढ़ी सीट पर देखा गया। गढ़ी में भाजपा को सफलता जरूर मिली, किंतु कार सेवा से हार के खतरे को टालने के लिए प्रत्याशी को कड़ी मेहनत करनी पड़ी। वहीं बागीदौरा और घाटोल भी कार सेवकों की टीम सक्रियता से लगी रही। जिले की एक सीट पर तो अन्य दल के प्रत्याशी को आर्थिक रूप से मदद देने की भी सुगबुगाहट है, जिसके चलते पार्टी तीसरे स्थान पर रही। पार्टी जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थी। कहां कमी रहीं, इसकी समीक्षा करेंगे। जनादेश को स्वीकार करते हैँ।