रूपारेल नदी को फिर से जीवन देने की पहल, जिला कलेक्टर ने बारा बियर पर किया मौके का निरीक्षण
मानसून से पहले रूपारेल नदी को पुनर्जीवित करने की दिशा में प्रशासन ने सक्रियता दिखानी शुरू कर दी है। बुधवार को अलवर जिला कलक्टर अर्तिका शुक्ला ने बड़ा बीयर स्थित रूपारेल नदी का निरीक्षण कर मौके पर स्थिति का जायजा लिया। निरीक्षण के दौरान उन्होंने जल संसाधन विभाग के अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दिए। कलक्टर शुक्ला ने बड़ा बीयर स्थित रूपारेल नदी पर जमा गाद हटाने, नदी के बहाव क्षेत्र में अतिक्रमण हटाने, जलकुंभी साफ करने तथा सरकारी भूमि पर पौधारोपण करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि यह कार्य राजस्थान सरकार की 'नदी पुनरुद्धार योजना' के तहत किया जा रहा है, ताकि मानसून पूर्व तैयारियां पूरी की जा सकें।
जिला कलक्टर ने किया निरीक्षण
निरीक्षण के दौरान कलक्टर ने यह भी स्पष्ट किया कि रूपारेल नदी के संरक्षण में सामाजिक संगठनों तथा जागरूक नागरिकों की भूमिका भी महत्वपूर्ण रहेगी। इसके लिए समन्वय बैठक आयोजित की जाएगी, जिसमें सभी हितधारकों को आमंत्रित किया जाएगा।रूपारेल नदी का ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्व उल्लेखनीय है। रियासतकाल में अलवर के तत्कालीन महाराजा राजर्षि सवाई जयसिंह और भरतपुर के राजा कृष्णसिंह के बीच इस नदी के जल बंटवारे को लेकर समझौता हुआ था, जिसकी स्मृति में 'जय कृष्ण क्लब' की स्थापना की गई। अलवर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र की जीवन रेखा मानी जाने वाली यह नदी लंबे समय से उपेक्षा का शिकार रही है। हालांकि पिछली कांग्रेस सरकार के समय भी इस नदी को पुनर्जीवित करने के प्रयास हुए थे, तब मंत्री जितेन्द्र सिंह और टीकाराम जूली ने इसके लिए बजट स्वीकृत करवाया था।
इसके बाद कलेक्टर डॉ. जितेन्द्र सोनी ने डीएमएफटी योजना के तहत काम शुरू करवाया था। पिछले साल मानसून के दौरान जयपुर से आई टीम ने भी जयसमंद बांध का निरीक्षण कर रिपोर्ट तैयार की थी। इसी क्रम में वर्तमान कलेक्टर अर्तिका शुक्ला और उपखंड अधिकारी प्रतीक चंद्रशेखर जूहीकर ने नया प्रस्ताव बनाकर राज्य सरकार को भेजा था, जिसे वर्तमान भाजपा सरकार ने मंजूरी दे दी है। अब इस योजना के तहत नदी के प्रवाह क्षेत्र को सीमेंटेड किया जाएगा, मुहाने पर पत्थरों व तारों से पिचिंग की जाएगी ताकि जल संरक्षण को बढ़ावा मिल सके और जयसमंद बांध तक अधिक से अधिक पानी की पहुंच सुनिश्चित हो सके। रूपारेल नदी को पुनर्जीवित करने की यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सार्थक कदम है, बल्कि इससे अलवर वासियों को जल संकट से राहत मिलने की उम्मीद भी जगी है।
