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राजस्थान के इस शहर में होली का अनोखा रंग, ब्रज जैसी लट्ठमार होली देखने दूर-दूर से आते हैं लोग

 
राजस्थान के इस शहर में होली का अनोखा रंग, ब्रज जैसी लट्ठमार होली देखने दूर-दूर से आते हैं लोग

अलवर न्यूज़ डेस्क - होली का नाम सुनते ही बरसाना की लट्ठमार और फूलों की होली का दृश्य आंखों के सामने आ जाता है। नौगांवा की डोलची मार होली की भी अलग पहचान है। बदलते दौर और बढ़ती व्यस्तता के बीच भी होली उसी रंग से मनाई जाती है। कुर्ता फाड़ डोलची मार होली मनाने के शौकीन लोग आज भी खुद को होली खेलने से नहीं रोक पाते। राजस्थान के सिंहद्वार और मेवात क्षेत्र का कस्बा नौगांवा अपने पारंपरिक त्योहारों के लिए दूर-दूर तक जाना जाता है। ब्रज की लट्ठमार होली की तर्ज पर कस्बे की डोलची मार होली के क्या कहने। 

डोलची मार होली देखने के लिए आसपास के दर्जनों गांवों से लोग जुटते हैं। कस्बे में यह आयोजन दो दिन तक मनाया जाता है। नौगांवा नगर पालिका चेयरमैन राजीव सैनी ने बताया कि पहले दिन दोनों पक्षों के लोग ढोल पर गीत गाते हुए होलिका दहन स्थल पर पहुंचते हैं। यहां गांव के खेड़ापति द्वारा रीति-रिवाज के अनुसार होलिका दहन की रस्म निभाई जाती है। यहां से सभी लोग चौपड़ बाजार पहुंचते हैं, जहां कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुति दी जाती है। कार्यक्रम को देखने के लिए नौगांव कस्बे सहित आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग आते हैं।

ऐसे खेली जाती है डोलची मार होली
धुलंडी के दिन सुबह 10 बजे तक रंग-गुलाल की होली खेली जाती है। 10 बजे के बाद लोग ढोल-नगाड़ों और डीजे की धुनों पर नाचते-गाते श्री सीताराम मंदिर चौक के लिए निकलते हैं। रास्ते में लोग उन पर रंग-गुलाल फेंकते रहते हैं और कस्बे के लोग श्री सीताराम मंदिर पहुंचते हैं। मंदिर चौक में दोनों तरफ पर्याप्त मात्रा में पानी भरा जाता है। इसी पानी में डोलची मार होली खेली जाती है। डोलची में पानी भरकर दूसरी तरफ के लोगों पर तेजी से डाला जाता है। डोलची में भरे पानी का वार डंडे के वार जैसा होता है। जिस पक्ष का पानी पहले खत्म हो जाता है, उसे पराजित माना जाता है।

ऐसी दिखती है डोलची
डोलची कांच के आकार की होती है, जो नीचे से संकरी और ऊपर से चौड़ी होती है। यह लोहे या चमड़े की बनी होती है। इसमें लकड़ी का हैंडल होता है। डोलची में एक से डेढ़ लीटर पानी आ सकता है। इसमें पानी भरकर जोर से मारा जाता है और डोलची की मार से सामने वाला व्यक्ति कराहने पर मजबूर हो जाता है।

फिर शुरू होता है मेला
होली के बाद लोग नहा-धोकर खाना खाते हैं और बाजार में आते हैं, फिर मेला शुरू होता है। आसपास के दर्जनों गांवों से आए लोगों के मनोरंजन के लिए लोग तरह-तरह के करतब दिखाते हैं। गांव वाले इसका भरपूर आनंद लेते हैं। इन दिनों किसानों की फसल आ जाती है। उस खुशी में वे मेले में खूब खरीदारी करते हैं।