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Alwar सर्किट हाउस में काला तेंदू वृक्ष बना आकर्षण का केंद्र, हर मौसम में सदाबहार

 
Alwar सर्किट हाउस में काला तेंदू वृक्ष बना आकर्षण का केंद्र, हर मौसम में सदाबहार

अलवर न्यूज़ डेस्क, अलवर पतझड़, सावन, वसंत, बहार, एक वर्ष के मौसम चार...। जब भी पतझड़ आता है, यह फिल्मी का गाना जुबां पर आता है। गाने में बताया गया है कि एक साल में चार मौसम होते हैं। इसमें पतझड़ भी शामिल है, लेकिन यह बात अलवर में सही साबित नहीं हो रही। अलवर में एक पेड़ ऐसा भी है, जो सदैव सदाबहार रहता है। इसमें कभी पतझड़ आता ही नहीं है। ये पेड़ अलवर शहर के सर्किट हाउस में आज भी लगा हुआ है और हरा भरा है। इसका नाम है काला तेंदू जो कई खूबियां लिए हुए है।

शताब्दी वर्ष में चल रहा है ये पेड़ : अरावली वन क्षेत्र में पाई जाने वाली वनस्पति में इस तरह के पेड़ नहीं पाए जाते हैं। क्योंकि यहां की भौगोलिक स्थिति में जीवित नहीं रह पाते हैं। इस पेड़ की उम्र करीब ढाई सौ साल रहती है। अलवर में लगा यह पेड़ इस साल सौ वर्ष पूरे कर रहा है। पर्यावरण प्रेमी कहते हैं कि हरियाली देखकर लगता है कि यह पूरा जीवन जी पाएगा।

ये हैं खूबियां : बीकानेर की एमजीएस यूनिवर्सिटी के हैड वनस्पति शास्त्री डॉ. अनिल कुमार छगानी के अनुसार तेंदू का वनस्पतिक नाम डाइओस्पाइरस मालाबेरिका है। तेंदू ऐबेनेसी कुल का है और इसको अंग्रेजी में गौब परसीमन कहते हैं। अन्य पेड़ों की तरह इसमें पतझड़ नहीं आता है। कुछ पत्ते ही गिरते हैं, लेकिन इसके बाद ही नए आ जाते हैं। इसलिए हमेशा हरा-भरा दिखता है। भारत के विभिन्न प्रांतों में तेंदू को अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। तेंदू पेड़ के फल, छाल, पत्ता और पेड़ से निकलने वाले गोंद का आयुर्वेदिक महत्व है। इसका फल चीकू की तरह होता है जो पहले खट्टा होता है और बाद में मीठा हो जाता है। तेंदू की पत्तियां मध्य भारत में सबसे महत्वपूर्ण एनटीएफपी प्रजातियों में से एक है। तेंदू की पत्तियों का उपयोग बीड़ी लपेटने के लिए किया जाता है।

इतिहासकार हरिशंकर गोयल बताते हैं कि अलवर के महाराजा जयसिंह वर्ष 1924 में पेरिस गए थे। वहां से लौटते समय यह दुर्लभ प्रजाति का पौधा साथ लेकर आए थे। इसके बाद इसे सर्किट हाउस में लगाया गया। इसका नाम उस समय किसी को पता नहीं था। न ही इसके फल की कोई जानकारी थी, लेकिन इसमें कभी पतझड़ आते हुए किसी ने नहीं देखा। तब से आज तक यह यहीं पर लगा हुआ है। बाद में इस पेड़ के नाम का बोर्ड काला तेंदू लगाया गया। अलवर में ऐसे पेड़ देखने को नहीं मिलते हैं। इसमें रीठा जैसे फल आते हैं।