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Alwar कभी अलवर की शान थीं बावड़ियां, आज पहचान की दरकार

 
Alwar कभी अलवर की शान थीं बावड़ियां, आज पहचान की दरकार
अलवर न्यूज़ डेस्क, अलवर कभी शहरवासियों की पानी को मांग पूरा करने वाली बावड़ियां आज पहचान की मोहताज हो गई हैं। रखरखाव के अभाव में खण्डहर हो रही इन बावड़ियों को पुनर्जीवित कर दिया जाए तो कुछ हद तक शहर की पानी की समस्या को दूर किया जा सकता है। शहर में करीब एक दर्जन से ज्यादा बावड़ियां हैं। इनके नाम पर अलवर के मोहल्ले भी बसे हुए हैं। अकाल की विभीषिका हो या कोई अन्य प्राकृतिक आपदा इन बावड़ियों ने पानी की मांग को पूरा किया। यह बावड़ियां गर्मियों में भी पानी से लबालब रहती थी। इनकी कारीगरी भी अनूठी थी, जिसे देखने के लिए कई जगहों से पर्यटक शहर आते थे।

बावड़ियों पर होते थे सामाजिक व धार्मिक संस्कार : इतिहासकार हरिशंकर गोयल बताते हैँ कि सेठ की बावड़ी, मोदी की बावड़ी, तीजकी बावड़ी, सुंदरनाथ की बावड़ी शामिल है। जिनके नाम पर मोहल्ले बसे हुए हैं। इसके अलावा प्रतापबंध व रावण देहरा में भी प्राचीन बावड़ियां बनी हुई थी। प्रतापबंध पर उपरा चलने पर पानी बावड़ियों में आता था। साल भर इसका उपयोग होता था। इन बावड़ियों ने जात-पात का भेद भुलाकर समाज को धार्मिक और सामाजिक संस्कारों से भी जोड़े रखा था। धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही वर-वधू के गठजोड़े की धोक भी इन बावड़ियों में लगती थी।

तीजकी बावड़ी पर आती थी तीज माता की सवारी : पूर्व राज परिवार के सदस्य नरेंद्र सिंह बताते हैं कि राजतंत्र के दौरान पानी की पूर्ति बावड़ियों के जल से होती थी। अलवर शहर की तीजकी बावड़ी के नाम पर तीजकी मोहल्ले का नाम रखा गया। तीज माता की सवारी यहां आती थी और तीज को पानी पिलाने की रस्म यहीं निभाई जाती थी। यहां का पानी सिंचाई के काम आता था, लेकिन अब यह बावड़ी अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुकी है।

मोदी की बावड़ी की बनावट करती है आकर्षित: अलवर शहर के रेलवे स्टेशन के सामने, महिला थाने के पास ही मोदी की बावड़ी मोहल्ला है। जैसा की नाम से ही पता चलता है मोहल्ले के प्रवेश द्वार पर एक विशाल दरवाजा बना है, इससे कुछ ही दूरी पर बावड़ी है, जिसकी बनावट आज भी लोगों को आकर्षित करती है। नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां है। साथ ही कमरे भी बने हुए हैं। इसके पास ही कुआं बना हुआ है। स्थानीय लोगों ने बताया कि कुछ साल पूर्व तक बावड़ी व कुओं में पानी था।