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Alwar सरिस्का के पुराने अधिकारियों को एनटीसीए की कमान, नहीं अटकेंगे प्रस्ताव

 
Alwar सरिस्का के पुराने अधिकारियों को एनटीसीए की कमान, नहीं अटकेंगे प्रस्ताव
अलवर न्यूज़ डेस्क, अलवर सरिस्का टाइगर रिजर्व में रह चुके पुराने वन अधिकारियों के हाथ अब राष्ट्रीय बाध संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की कमान है। सरिस्का के विकास की यही उम्मीद है। पुराने अनुभव के चलते सरिस्का के विकास के प्रस्ताव अब नहीं अटकेंगे और केन्द्र सरकार की ओर मिलने वाली मदद में भी देरी नहीं होगी। सरिस्का में पूर्व में मुख्य वन संरक्षक जीएस भारद्वाज को अब एनटीसीए का सदस्य सचिव नियक्त किया गया है। उसी दौरान सरिस्का में रहे डीएफओ हेमंत सिंह एनटीसीए के सदस्य हैं। यानी सरिस्का टाइगर रिजर्व और प्रदेश के अन्य टाइगर रिजर्व को केन्द्रीय मदद में अब आसानी रहेगी।

सरिस्का में समस्याओं का हो सकता है निपटारा : वर्तमान में सरिस्का में गांवों के विस्थापन, बाघों के बाहर निकलने, बाघों की मॉनिटरिंग, सुरक्षा जैसी अनेक समस्याएं हैं। ये समस्याएं एनटीसीए में नियुक्त वन अधिकारियों के सरिस्का में रहते भी विद्यमान थी। यही वजह है कि इन अधिकारियों के पुराने अनुभव अब सरिस्का की समस्याओं के निराकरण में मददगार हो सकते हैं।

सरिस्का, राज्य व केन्द्र में सामंजस्य भी जरूरी : सरिस्का टाइगर रिजर्व के विकास के लिए सरिस्का, राज्य व केन्द्र के अधिकारियों के बीच सामंजस्य होना जरूरी है। पूववर्ती सरकार के दौरान तीनों स्तरों पर सामंजस्य में कुछ कमी रही। इसका नतीजा सरिस्का में बाघों के गुम होने, बाघों के सरिस्का से बाहर निकलने, गांवों के विस्थापन की गति अपेक्षाकृत धीमी होने सहित अनेक विसंगतियों के रूप में सामने आया।

टाइगर रिजर्व के विकास में एनटीसीए का बड़ा रोल

टाइगर रिजर्व के विकास में एनटीसीए का बड़ा रोल होता है। बाघों की शिफ्टिंग, मॉनिटरिंग, सुरक्षा, विकास प्रस्तावों को मंजूरी, टाइगर रिजर्व में बसे गांवों का विस्थापन, क्षेत्राधिकार में वृद्धि समेत अनेक कार्यों के लिए एनटीसीए की मंजूरी लेनी होती है। वहीं टाइगर रिजर्व के अंदर सड़क एवं अन्य प्रस्तावों पर भी एनटीसीए की मुहर जरूरी होती है।

यह है सरिस्का की जरूरत

वर्तमान में सरिस्का की सबसे बड़ी जरूरत बाघों की मॉनिटरिंग में सुधार की है। इसके लिए वनकर्मियों की कमी की समस्या को दूर करना जरूरी है। मॉनिटरिंग के अभाव में सरिस्का के बाघ बाहर निकलकर हरियाणा के रेवाड़ी और जयपुर तक पहुंच रहे हैं। वहीं गांवों के विस्थापन की गति धीमी होना भी बाघों के सरिस्का से बाहर निकलने का कारण बन रहे हैं।