Alwar कांग्रेस को अलवर शहर की चिंता, तीसरे मोर्चे ने उड़ाई दोनों की नींद
पहले भी कई सीटों पर बिगाड़ चुकी गणित: तीसरे मोर्चे के प्रमुख दल बसपा ने गत विधानसभा चुनाव में अलवर की 11 में से 2 सीटों पर जीत हासिल की, वहीं रामगढ़ एवं कुछ सीटों पर प्रमुख दलों का राजनीतिक गणित ही गड़बड़ा दिया। हालांकि बसपा ये दोनों सीटें टिकट नहीं मिलने पर प्रमुख दलों से आए नेताओं के भरोसे ही जीती और चुनाव जीतने के बाद दोनों ही विधायकों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। इस कारण बसपा की रणनीति जल्दबाजी में बाहर से आए नेताओं को टिकट देने के बजाय अच्छी तरह देखकर टिकट देने की है। शहरी क्षेत्रों में भाजपा का दबदबा माना जाता है। यहां भी पिछले 15 सालों से बरकरार है। तीन विधानसभा चुनाव भाजपा के प्रत्याशी यहां से जीतते आ रहे हैं। भाजपा का ये किला ढहाने में कांग्रेस विफल रही। इस बार भी पार्टी इसी तरह की रणनीति बना रही है पर कांग्रेस इस बार अपनी कमियों से सबक लेते हुए इसकी काट निकाल रही है। दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस का यहां फिर दबदबा होगा।
इस तरह शुरू हुआ भाजपा के जीत का क्रम
वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यहां से बनवारी लाल सिंघल को प्रत्याशी बनाया और कांग्रेस ने नरेंद्र शर्मा को मैदान में उतारा लेकिन कांग्रेस यहां सफल नहीं हो सकी और भाजपा के प्रत्याशी जीत गए। इसी तरह वर्ष 2013 के चुनाव में भाजपा व कांग्रेस ने वही पुराने प्रत्याशी मैदान में उतारे। कांग्रेस ने उस समय काफी दम लगाया ताकि भाजपा की ये सीट हथियाई जा सके लेकिन फिर कांग्रेस को यहां विफलता हाथ लगी। भाजपा के प्रत्याशी जीत दर्ज कर गए। वर्ष 2018 के चुनाव में भाजपा ने हैट्रिक लगाने के लिए फिर रणनीति बदली और उन्होंने दो बार के विधायक बनवारी लाल सिंघल का टिकट काटकर संजय शर्मा पर दांव लगाया। वहीं कांग्रेस ने भी भाजपा की तर्ज पर रणनीति बदली और महिला प्रत्याशी श्वेता सैनी को मैदान में उतारा। प्रचार-प्रसार में दोनों ही दलों ने कोई कमी नहीं छोड़ी। कांग्रेस के पास महिला प्रत्याशी होने के चलते लग रहा था कि लोग पार्टी से अधिक जुड़ेंगे। महिलाओं के वोट भी श्वेता सैनी को ज्यादा मिलेंगे लेकिन वह सफल नहीं हो सकीं और भाजपा प्रत्याशी को जीत मिली। इस बार कांग्रेस भाजपा के जीत के इस रेकॉर्ड को तोड़ने की तैयारी कर रही है। वहीं भाजपा भी अपनी रणनीति इस बार बदल सकती है। राजनीतिक पंडित कहते हैं कि जनता नए चेहरे देखना चाहती है। पार्टियां भी अपने सर्वे के मुताबिक ही प्रत्याशी मैदान में उतारती हैं। अब देखना है कि दोनों प्रमुख दल किस प्रत्याशी पर भरोसा करते हैं।