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Ajmer लोकसभा सीट की 2009 में बदली थी तस्वीर

 
Ajmer लोकसभा सीट की 2009 में बदली थी तस्वीर

अजमेर न्यूज़ डेस्क, अजमेर लोकसभा क्षेत्र में पहले के दौर में जहां कांग्रेस का दबदबा रहा, वहीं बाद में भाजपा के रासासिंह रावत करीब पांच बार सांसद चुने गए। लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव से पूर्व नए परिसीमन के चलते अजमेर लोकसभा सीट की तस्वीर एवं तासीर भी बदल गई।  अजमेर लोकसभा क्षेत्र में नए परिसीमन के बाद ना केवल चुनाव का नतीजा प्रभावित हुआ, बल्कि जातिगत समीकरण भी एकाएक बदल गए। पहले इस सीट पर रासासिंह रावत की पकड़ के पीछे की वजह जातिगत वोटबैंक भी था।

ब्यावर विधानसभा क्षेत्र के ब्यावर के आस-पास के ग्रामीण क्षेत्र, टॉडगढ़ आदि के वोट एकमुश्त पड़ने से रासासिंह रावत लगातार जीत हासिल कर रहे थे। मगर परिसीमन के बाद ब्यावर विधानसभा क्षेत्र राजसमंद लोकसभा सीट में शामिल होने से इस सीट पर टिकट वितरण एवं जीत-हार के समीकरण भी बदलने लगे। परिसीमन के बाद अजमेर में दूदू विधानसभा क्षेत्र शामिल होने से सोशल इंजीनियरिंग में भी बदलाव हो गया। इसके बाद 2014 में अजमेर लोकसभा सीट से भाजपा के सांवरलाल जाट एवं 2019 में भागीरथ चौधरी भाजपा के टिकट पर जीतने में सफल रहे। भाजपा एवं कांग्रेस इस सोशल इंजीनियरिंग को ध्यान में रखते हुए ही टिकट का वितरण करती रही हैं।

भाजपा-कांग्रेस के अपने-अपने समीकरण

अजमेर लोकसभा सीट पर प्रत्याशी घोषित करने में भाजपा एवं कांग्रेस हमेशा जातिगत समीकरण से हित साधने का प्रयास करती रही हैं। टिकट वितरण में इस बार पहला मौका है जब भाजपा एवं कांग्रेस ने एक ही आधार पर जातिगत समीकरण को साधने की कोशिश की है। भाजपा के नक्शे कदम पर कांग्रेस ने जाट वोटबैंक में सेंध मारने के लिए इस बार समान तुरुप का पत्ता खेला है। अब यह तो मतदान के बाद पता चलेगा कि जातिगत समीकरण साधने में कौन कितना सफल रहा।