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हाईकोर्ट पहुंचा दरगाह में ऐतिहासिक शिव मंदिर होने का मामला, अदालत में की गई याचिका पर रोक लगाने की अपील

 
हाईकोर्ट पहुंचा दरगाह में ऐतिहासिक शिव मंदिर होने का मामला, अदालत में की गई याचिका पर रोक लगाने की अपील 

ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान ने दरगाह में मंदिर होने के दावे वाले मुकदमे की सुनवाई रोकने के लिए हाईकोर्ट में रिट दायर की है। यह रिट सिविल जज एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (अजमेर पश्चिम) कोर्ट के सिविल वाद 66/2024 (437/2024) भगवान श्री संकटमोचन महादेव विराजमान बनाम दरगाह कमेटी के आदेश के खिलाफ दायर की गई है। रिट में बताया गया है कि यह वाद दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट 1955 के विपरीत है। एक्ट के तहत दरगाह शरीफ में धार्मिक समारोहों से जुड़े किसी भी विवाद पर सिविल कोर्ट फैसला नहीं कर सकते। यह भारत की एकमात्र सूफी दरगाह है, जिसके पास धार्मिक मामलों के लिए विधायी अधिनियम भी है। साथ ही वाद मूल्यांकन अधिनियम 1961 का हवाला देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने अजमेर कोर्ट में वाद के लिए बहुत कम फीस अदा की है। रिट के आधार बने इन 2 बिंदुओं को पढ़ें

1. कम फीस पर दायर किया गया मामला
हिंदू सेना ने अजमेर कोर्ट में बहुत कम कोर्ट फीस पर मामला दायर किया है। राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन अधिनियम 1961 के अनुसार लागू डीएलसी दर के अनुसार कई करोड़ रुपए की संपत्ति की घोषणा के लिए मात्र 50 रुपए कोर्ट फीस का भुगतान किया गया है।

2. अधिकार क्षेत्र के विपरीत

अंजुमन सैयद जादगान की रिट याचिका के आधार के अनुसार, विद्वान अजमेर ट्रायल कोर्ट को इस मामले की सुनवाई करने का अधिकार नहीं है। यह विद्वान ट्रायल कोर्ट के आर्थिक अधिकार क्षेत्र के विपरीत है। इसके अलावा, अजमेर कोर्ट को वर्तमान मामले में सुनवाई करने या निर्णय देने का अधिकार नहीं है। यह सिविल कोड प्रक्रिया द्वारा विशेष रूप से निषिद्ध है।

सैयद सरवर चिश्ती ने कहा-
याचिकाकर्ता विष्णु गुप्ता के खिलाफ 17 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं और हिंदू मंदिर का उनका दावा बिल्कुल निराधार है क्योंकि पिछले 700 वर्षों से किसी ने भी यह दावा नहीं किया है कि दरगाह अजमेर शरीफ में हिंदू मंदिर है। सैयद सरवर चिश्ती ने कहा- दरगाह अजमेर शरीफ सदियों से शांति, राष्ट्रीय एकता और भाईचारे का प्रतीक रही है, लेकिन यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने के लिए इसे विवादों में घसीटा जा रहा है। याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत स्रोतों और साक्ष्यों का कोई अकादमिक या ऐतिहासिक महत्व नहीं है और याचिका का निपटारा किया जाना चाहिए ताकि गलत भ्रांतियां न फैलें।

इसके अलावा रिट में बताया गया है कि हिंदू सेना की याचिका नागरिक प्रकृति की नहीं है, इसमें मुख्य रूप से धार्मिक अनुष्ठान और समारोह शामिल हैं। दरगाह अजमेर शरीफ एक 'धार्मिक स्थल' है, जिसमें तीन प्राचीन मस्जिदें स्थित हैं। सभी दरगाह शरीफ परिसर के भीतर तीर्थयात्रियों के लिए हैं और यहां सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह भी है।

अब अजमेर में 19 अप्रैल को सुनवाई होनी है। हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने 23 सितंबर को अजमेर कोर्ट में केस दायर कर मांग की थी कि अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह परिसर को भगवान संकट मोचन महादेव विराजमान मंदिर घोषित किया जाए। याचिका में दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को पक्षकार बनाया गया है। पिछली सुनवाई (24 जनवरी) में दरगाह कमेटी ने कोर्ट से कुछ समय मांगा था। याचिका में दरगाह कमेटी ने कहा था- 'वादी की ओर से दायर याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।' इस पर कोर्ट ने हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता से जवाब मांगा था। उन्होंने जवाब पेश किया। जिसके बाद दरगाह कमेटी ने समय मांगा। इसके बाद कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 1 मार्च की तारीख दी थी। 1 मार्च को बिजयनगर की घटना के चलते अजमेर बंद रहा। जिला बार एसोसिएशन ने बंद का समर्थन किया। ऐसे में कामकाज ठप रखा गया है। इसके चलते सुनवाई टल गई। अगली तारीख 19 अप्रैल दी गई।

अजमेर दरगाह के अंतर्गत गर्भगृह में शिव मंदिर होने के दावे पर आज सुनवाई टल गई है। अब सुनवाई 19 अप्रैल को होगी। बिजयनगर की घटना को लेकर जिला बार एसोसिएशन ने आज अजमेर बंद का समर्थन किया था। इसके चलते सुनवाई नहीं हो पाई।अजमेर दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका को खारिज करने की मांग वाली अर्जी पर शुक्रवार को सुनवाई हुई। इसी बीच मामले से जुड़े एक वकील को गोली मारने की धमकी मिली। कोर्ट के बाहर मिले एक व्यक्ति ने खुद को मीडियाकर्मी बताया और धमकी दी कि सुनवाई के दौरान कोर्ट में आने पर गोली मार दी जाएगी।