Ajmer प्रदूषण के बीच काम करने वालों की अनदेखी से प्रभावित हो रही जीडीपी

वायु प्रदूषण के बारे में चिंता तो कार्बन उत्सर्जन करने वाले वातानुकूलित स्थानों पर होती है पर इससे सर्वाधिक प्रभावित वंचित वर्ग के बारे में अभी भी कुछ खास विचार नहीं किया जाता है। यह इससे ही स्पष्ट हो जाता है कि विगत कुछ दशकों में वायु प्रदूषण के विभिन्न समूहों पर प्रभाव संबंधी कुछ अध्ययन तो हुए हैं, पर सर्वाधिक प्रभावित वर्गों को लेकर अध्ययन बहुत कम हुए हैं। संभवतया, इनका जीवन कहीं भी चिंता का विषय नहीं है। भारत में तो इस संबंध में न के बराबर अध्ययन हुए हैं। कुछ वर्षों पहले ईरान में सड़क की सफाई करने वाले कर्मियों पर वायु प्रदूषण के प्रभाव संबंधी अध्ययन से यह तथ्य स्थापित हुआ था कि यह वर्ग वायु प्रदूषण से सर्वाधिक प्रभावित है और इनकी बीमारियों व मृत्यु का अहम कारक निरंतर वायु प्रदूषण व मिट्टी से संपर्क है। यदि हम अपने चारों ओर देखें तो अनेकानेक ऐसे सेवाकर्मी व व्यवसायी मिलेंगे जो निरंतर खुले वातावरण में रहते हैं और चाहे-अनचाहे प्रदूषण के सम्पर्क में आकर अपनी सेहत को आघात पहुंचाते हैं। उन्हें मालूम है कि प्रदूषित वायु उनके लिए जहर है, पर मजबूरियों और जीविकोपार्जन के चलते उससे दूर भी नहीं रह सकते हैं। ऐसे वर्गों में प्रमुख रूप से पुलिसकर्मी, स्वच्छताकर्मी, सुरक्षा गार्ड, सूक्ष्म व्यवसायी, स्ट्रीट वेंडर और कचरा बीनने वाले होते हैं। इनमें पुरुष व महिला लगभग बराबर अनुपात में होते हैं। ये सभी वर्ग प्रत्यक्षत: प्रदूषित वायु के शिकार होकर श्वसन संबंधी घातक बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं।
हाल ही दिल्ली की प्रतिष्ठित संस्था, चिन्तन की ओर से सफाईकर्मियों, कचरा बीनने वाले तथा सुरक्षा गार्ड्स पर वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव संबंधी एक व्यापक अध्ययन किया गया। पाया गया कि करीब 97% सफाईकर्मी, 95% कचरा बीनने वाले तथा 82% सुरक्षा गार्ड प्रदूषित वायु के शिकार होते हैं तथा उनमें से लगभग 80% श्वसन संबंधी रोगों का शिकार होते हैं। इनमें 20% को तो गंभीर श्वसन रोग होते हैं तथा महिलाएं, पुरुषों की अपेक्षा अधिक गंभीर रोगावस्था का शिकार होती हैं। औसतन 50% को सुरक्षा उपकरणों व वस्त्रों के बारे में जानकारी तक नहीं थी। विडम्बना तो यह है कि पूर्ण कार्यावधि के दौरान सघन प्रदूषण के संपर्क में रहने वाले कर्मियों की सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा को लेकर किसी भी स्तर पर चिंता और सख्ती न होने से जीवन चुनौतीपूर्ण ही रहता है। अहम विषय यह है कि इन वर्गों के मुख्य नियोक्ता सार्वजनिक संस्थाएं जैसे कि सरकार, नगरीय निकाय आदि ही हैं और वहीं पर घोर शिथिलता के कारण जीवन निरंतर संकटों से जूझता रहता है। कई बार तो यह प्रश्न भी उठने लगता है कि क्या हमारे जीवन को सुगम बनाने वाला यह वर्ग किसी भी रूप में सुरक्षा का हकदार नहीं है। सभी वर्ग अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते हैं, किन्तु यह विशिष्ट वर्ग जीवन के अधिकार से वंचित है। राष्ट्रीय स्तर पर अनेकानेक वर्षों से सफाई कर्मचारी आयोग बनाया हुआ है, जिसका मूल उद्देश्य सफाई कर्मचारियों के कल्याण संबंधी योजनाओं हेतु परामर्श एवं उनके किसी भी प्रकार से हो रहे शोषण को रोकना है पर उसने भी अपनी स्थापना से आज तक प्रदूषण से जीवन पर विषम प्रभाव की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट नहीं किया है।
सन् 2019 में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम की शुरुआत की गई ताकि बेहतर वायु सुलभ हो सके। पर समन्वय के अभाव एवं सम्यक दृष्टि न होने से वांछित लक्ष्य अभी भी दूर की कौड़ी बना हुआ है। उक्त कार्यक्रम 102 शहरों में क्रियान्वित होना है। प्रदूषण जन्य बीमारियों के कारण मानव हानि एवं स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ सकल घरेलू उत्पाद को प्रभावित कर रहे हैं। यदि उक्त कार्यक्रम के तहत बाहरी वातावरण में कार्यरत कर्मियों हेतु उपयोगी एवं समुचित सुरक्षा कवच विकसित कर उनका प्रभावी क्रियान्वयन कर दिया जाए तो बहुत हद तक जनहानि को रोका जा सकता है। वर्तमान में उपलब्ध सुरक्षा संबंधी साधनों का उपयोग एक मुहिम तक सीमित न रखकर निंरतर रूप से हो, यह आवश्यक है। ‘चिन्तन’ की ओर से किए गए अध्ययन में कर्मियों को प्रदूषण का भान होना तो पाया गया, साथ ही उसे अधिक विकट करने वाले कारक जैसे धूम्रपान एवं शीतकाल में कचरा या लकड़ी जलाकर गर्मी पैदा करने की बहुतायत भी पाई गई।