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Ajmer आतंकी टुंडा की बिगड़ी तबीयत, कड़ी सुरक्षा में जेएलएन अस्पताल लाया गया

 
Ajmer आतंकी टुंडा की बिगड़ी तबीयत, कड़ी सुरक्षा में जेएलएन अस्पताल लाया गया

अजमेर न्यूज़ डेस्क, अजमेर 1993 के सीरियल बम ब्लास्ट के मास्टरमाइंड आतंकी अब्दुल करीम टुंडा की तबीयत खराब होने पर बुधवार दोपहर पुलिस कड़ी सुरक्षा के बीच सेंट्रल जेल से जेएलएन अस्पताल पहुंची। जहां मेडिसिन, सर्जरी और यूरोलॉजी विभाग में टुंडा को दिखाया गया। प्रारंभिक जांच में टुंडा को कब्ज की बीमारी बताई गई है। बाद में उन्हें कड़ी सुरक्षा के बीच वापस जेल में स्थानांतरित कर दिया गया। टुंडा को दोपहर में जेएलएन अस्पताल लाया गया। जिसे कड़ी सुरक्षा के बीच मेडिसिन, सर्जरी और यूरोलॉजी विभाग में दिखाया गया. अस्पताल में इलाज के दौरान कोतवाली और सिविल लाइन थाने की पुलिस भी तैनात रही। 80 के दशक में अब्दुल करीम उर्फ टुंडा ने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से इसकी ट्रेनिंग ली और फिर लश्कर-ए-तैयबा के संपर्क में आया. 6 दिसंबर 1993 को ट्रेन धमाकों के वक्त करीम टुंडा लश्कर का विस्फोटक विशेषज्ञ था.

मुंबई के डॉ. जलीस अंसारी, नांदेड़ के आजम गौरी और करीम टुंडा ने 'तंजीम इस्लाम उर्फ मुस्लिम' संगठन बनाकर बाबरी विध्वंस का बदला लेने के लिए 1993 में पांच बड़े शहरों में ट्रेनों में बम धमाके किए थे।
टुंडा पर 1996 में दिल्ली में पुलिस मुख्यालय के सामने बम विस्फोट का भी आरोप है। 1996 में सुरक्षा एजेंसी इंटरपोल ने उसका रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया था।
साल 2000 में टुंडा के बांग्लादेश में मारे जाने की खबरें आईं, लेकिन 2005 में दिल्ली में पकड़े गए लश्कर आतंकी अब्दुल रज्जाक मसूद ने खुलासा किया कि टुंडा जिंदा है.
2001 में संसद भवन पर हमले के बाद भारत ने जिन 20 आतंकियों के प्रत्यर्पण की मांग पाकिस्तान से की थी उनमें टुंडा भी शामिल था.
बम बनाते समय अपना एक हाथ खोने के बाद अब्दुल करीम का नाम 'टुंडा' रखा गया। उनके खिलाफ करीब 33 आपराधिक मामले दर्ज हैं और करीब 1997-98 में करीब 40 बम धमाकों का आरोप है. लश्कर जैसे कुख्यात आतंकी गिरोह से जुड़े अब्दुल करीम का नाम एक दुर्घटना के बाद टुंडा रखा गया था। वर्ष 1985 में टुंडा टोंक जिले की एक मस्जिद में जिहाद की बैठक ले रहा था. इस दौरान वह पाइप गन दिखा रहा था. तभी ये बंदूक फट गई, जिसमें उनका हाथ उड़ गया. इसी से उसका नाम टुंडा पड़ा।