Ajmer पक्के मकानों की 'कच्ची बस्ती' को आज भी है पट्टे की दरकार

अजमेर न्यूज़ डेस्क, अजमेर सरकार द्ववारा प्रशासनिक अभियान चलाकर लोगों को पट्टे जारी करने की योजना में विभागों की कार्यप्रणाली ही व्यवधान साबित हो रही है। जन कल्याणकारी योजना के तहत कच्ची बस्ती नियमन की हकीकत घोषणा से कतई उलट है। इसके लिए प्रशासन शहरों के संग अभियान के तहत शिविर लगाए जाते हैं। प्रचार-प्रसार किया जाता है। लेकिन कच्ची बस्तियों के नियमन को लेकर इतनी तकनीकी पेचीदगियां बताई जाती हैं कि आवेदक स्थानीय निकायों के चक्कर लगाकर परेशान हो जाते हैं। शहर के वार्ड छह व सात के आसपास के क्षेत्र छोटी नागफणी, बाबूगढ़, गोपाल कुंड रोड, प्रिंस हिल कॉलोनी, पोस्टमैन कॉलोनी, महादेव नगर, संजय नगर, अंबा कॉलोनी, राहुल नगर, कृष्णा नगर आदि कच्ची बस्ती क्षेत्र में अधिसूचित हैं। यहां लोगों ने पानी-बिजली के कनेक्शन ले रखे हैं। अधिकांश लोग 15-20 साल व इससे भी पहले से बसे हैं। इन क्षेत्रों में करीब दो हजार मकान हैं।
पार्षद कुंदन वैष्णव ने बताया कि सरकार की मंशा 500 रुपए में आवेदक को पट्टा देने की है। लेकिन हकीकत है कि प्रभावशाली लोग पट्टा बनवाने में सफल हो जाते हैं, जबकि मेहनत मजदूरी करने वाला दिहाड़ी श्रमिक सालों से मकान में रहने के बावजूद उसका मालिक नहीं बन पाता। आवेदन में भी खासी राशि व दस्तावेजों की व्यवस्था करनी पड़ती है।
17 साल पहले न्यास ने दिए थे पट्टे
पार्षद वैष्णव ने बताया कि इस क्षेत्र में पटवारी या गिरदावर सर्वे के लिए ही नहीं आए। भूमि की किस्म, राजस्व रिकार्ड में सरकारी, जमाबंदी में भूमि की किस्म सरकारी है या नगर सुधार न्यास या एडीए के नाम है, इसका पता ही नहीं है। 17 साल पहले नगर सुधार न्यास ने जरूर पट्टे दिए थे। आवेदन करने में कोई खर्च नहीं। एडीए की ओर से क्षेत्र में आवेदन-फॉर्म वितरित किए गए थे। जिन्होंने आवेदन किया उनके दस्तावेज की जांच के बाद ही सर्वे किया जाता है। कुछ साल पहले सर्वे कराया था लेकिन आवेदकों के पास पर्याप्त दस्तावेज नहीं मिले। इसलिए पट्टे जारी नहीं किए गए होंगे।