Ajmer रसायनों का प्रयोग विफल, जलकुंभी बनी जी का जंजाल
अब दो अन्य विकल्पों पर फोकस
बायोडिग्रेडेबल प्रकिया : निगम प्रशासन अब अन्य विकल्प के रूप में बॉयोलॉजिकल प्रयोग करेगा। इसमें बायोडिग्रेडेबल प्रकिया अपनाई जाएगी। विशेषज्ञों के अनुसार दक्षिण अफ्रीका से आयातित पावडर पानी में डालने पर जलीय पादप डी-कंपोज हो जाते हैं। जिन्हें मछलियां खा लेती हैं। हाल ही में जिला कलक्टर के समक्ष इसका प्रेजेंटेशन भी दिया गया है। इसमें यदि मछलियों व जलीय जीव सुरक्षित रहते हैं तो इसे अमल में लाया जा सकता है।
नैनो बबल्स प्रक्रिया में अल्ट्रा साउंड रेज का प्रयोेग : निगम प्रशासन से संपर्क करने पहुंची एक अन्य फर्म नैनो बबल्स प्रक्रिया से झील को जलकुंभी मुक्त करने का दावा कर रही है। इस तकनीक में पानी में बबल्स छोड़कर उन पर अल्ट्रासोनिक किरणें डाली जाएंगी। जो मछलियों को नुकसान पहुंचाए बिना जलकुंभी को झील के पैंदे में बैठा देगी जहां इन्हें मछलियां पानी के साथ निगल लेंगी। इन विधियों का प्रयोग करने के बाद जिला कलक्टर के समक्ष सोमवार को प्रजेंटेशन दिया जा सकता है।