Pratapgarh जलवायु परिवर्तन, मानवीय गतिविधियों के प्रतिकूल प्रभाव से जल निकायों पर संकट बढ़ा

प्रतापगढ़ न्यूज़ डेस्क, प्रतापगढ़ जिले के जलाशय कभी प्रवासी पक्षियों के लिए सुरक्षित ठिकाने हुआ करते थे, लेकिन हाल के वर्षों में इनकी संख्या में भारी गिरावट आई है। जलवायु परिवर्तन, जलाशयों में पानी की कमी, अवैध शिकार और अन्य मानवीय गतिविधियों के कारण प्रवासी ही नहीं, बल्कि स्थानीय पक्षियों का भी अस्तित्व संकट में पड़ गया है। जिले के प्रमुख जलाशयों में पानी की कमी और उनके किनारों पर बढ़ते निर्माण कार्यों के चलते पक्षियों के लिए भोजन और आवास की समस्या बढ़ती जा रही है। इससे जैव विविधता पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है और पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो रहा है।
स्थानीय और हजारों किलोमीटर दूर से आने वाले इन पक्षियों की संख्या हुई कम: जिले के गादोला तालाब, गौतमेश्वर, अचलावदा, निनोरा, केशरियावद तालाब और जाखम के बेकवाटर क्षेत्र जैसे जलाशयों में पहले प्रवासी पक्षियों की भरमार होती थी। सर्दियों के मौसम में हजारों किलोमीटर दूर से आने वाले पक्षी यहां प्रवास करते थे और स्थानीय जैव विविधता को समृद्ध बनाते थे, लेकिन अब इन जलाशयों पर पक्षियों की चहचहाहट कम होती जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार जलवायु परिवर्तन से न केवल इन जलाशयों के जल स्तर में गिरावट आई है, बल्कि इनके आसपास का पर्यावरण भी बदल गया है। इससे बार हैडेड गुज, ग्रेल लेग गुज, नॉर्दर्न शोवलर, रेड क्रेस्टेड पोचार्ड और ब्लैक विंग्ड स्टिल्ट जैसे पक्षियों की संख्या में भारी कमी आई है।
स्थानीय पक्षियों की स्थिति भी चिंताजनक होती जा रही है। सारस, कॉम्ब डक, लिटिल ग्रिब, स्पॉट बिल्ड डक, ब्लैक नेक्ड स्टॉर्क, पेंटेड स्टॉर्क, स्पूनबिल, वूली नेक्ड डक और किंगफिशर जैसे पक्षी भी अब पहले की तरह दिखाई नहीं देते। इनके प्राकृतिक आवासों में लगातार गिरावट आ रही है, जिससे इनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। पक्षियों की घटती संख्या के पीछे जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ा कारण बनकर उभरा है। बारिश के पैटर्न में बदलाव और जलाशयों में पानी की कमी से इन पक्षियों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा है। अत्यधिक जल दोहन और जलाशयों में गाद भरने के कारण जल स्तर कम होता जा रहा है, जिससे प्रवासी पक्षियों को यहां रुकने में कठिनाई हो रही है। इसके अलावा, जलाशयों के किनारों पर हो रहे निर्माण कार्य और कृषि विस्तार से इनके प्राकृतिक आवास सिकुड़ते जा रहे हैं।
कई क्षेत्रों में बढ़ते मछली पालन व्यवसाय के कारण जलाशयों में उपलब्ध प्राकृतिक भोजन की मात्रा भी घट रही है। इससे पक्षियों के लिए अनुकूल परिस्थितियां समाप्त होती जा रही हैं। कुछ क्षेत्रों में अवैध शिकार भी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। कई प्रवासी पक्षियों को भोजन या व्यापार के उद्देश्य से निशाना बनाया जाता है, जिससे उनकी आबादी तेजी से घट रही है। मानव जनित प्रदूषण भी एक और महत्वपूर्ण कारक है, इससे जलाशयों का पानी दूषित हो रहा है और इससे पक्षियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। पक्षीविद् मंगल मेहता ने बताया कि पक्षियों के संरक्षण के लिए जलाशयों और उनके आसपास के क्षेत्रों को सुरक्षित रखना बेहद जरूरी है। जलाशयों के किनारों पर अवैध निर्माण को रोकना, जल स्रोतों को पुनर्जीवित करना और जल स्तर को बनाए रखना आवश्यक है, ताकि पक्षियों को पर्याप्त पानी और भोजन मिल सके। अवैध शिकार पर सख्त प्रतिबंध लगाने और दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की जरूरत है। जलाशयों के आसपास पर्यटन और मानवीय हस्तक्षेप को नियंत्रित किया जाना चाहिए, ताकि पक्षियों को बिना किसी बाधा के सुरक्षित वातावरण मिल सके। स्थानीय समुदायों को पक्षी संरक्षण में शामिल करने के लिए विशेष अभियान चलाने की आवश्यकता है। विद्यालयों और कॉलेजों में पक्षी संरक्षण से जुड़ी शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि नई पीढ़ी इस दिशा में जागरूक बन सके। इसके अलावा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पक्षियों की नियमित गणना और प्रवास के पैटर्न की निगरानी जरूरी है। इससे उनके अस्तित्व पर मंडराते खतरों का आकलन किया जा सकेगा और प्रभावी समाधान तैयार किए जा सकेंगे।