Jhalawar प्रदेश में सिर्फ जिले में ही बेसाल्ट, मेसेनरी के नाम से आवंटित कर रखी है खदानें
चट्टानें निकालने के बाद टूटने वाले पत्थर से गिट्टी और चुनाई के काम आने वाली रेत भी बनाई जा रही है। जिले में बेसाल्ट की रॉयल्टी मेसेनरी पत्थर के नाम से 40 रुपए प्रति टन निर्धारित कर रखी है जबकि इसी पत्थर की खदानों को ग्रेनाइट के नाम से लीज पर दिया जाए तो इसकी रॉयल्टी करीब 300 रुपए प्रति टन तक मिलेगी लेकिन सरकार को इसकी चिंता ही नहीं है।
झालावाड़ जिले के डग भवानी मंडी क्षेत्र में मिश्रौली गांव के आसपास वर्ष 2018 और उससे पूर्व में मेसेनरी स्टोन के नाम पर आवंटित खदानों से लोग ग्रेनाइट जैसा कीमती पत्थर निकालते रहे और खान विभाग को भनक तक नहीं लगी।लीज का आवंटन करने के बाद विभाग ने इस इलाके से ऐसा मुंह मोडा की पलट कर दोबारा यहां नहीं देखा। मेसेनरी स्टोन के नाम पर आवंटित की गई इन खदानों से लोग बड़े-बड़े ब्लॉक निकलते रहे तथा सरकार को मेसेनरी स्टोन की रॉयल्टी चुका कर चूना लगाते रहे।
सारे मामले में कुछ समय पहले सरकारी महकमों में कुछ हलचल हुई और इन बेसाल्ट की चट्टानों को आखिरकार अब खनिज विभाग ने ग्रेनाइट मान लिया है तथा सरकार को पत्र लिखा है।
जिसमें इस पत्थर को ग्रेनाइट घोषित करने की बात कही गई है लेकिन मजे की बात यह है कि अभी भी लोग इन खदानों से पत्थर निकाल रहे हैं और मेसेनरी स्टोन की रॉयल्टी चुका रहे हैं।
सूत्र बताते हैं कि ऐसे खदान मालिक और व्यापारी जिन्होंने इस पत्थर की परख कर ली थी वह लंबे समय से इसको दूसरे स्थान पर ले जाकर ग्रेनाइट के तौर पर तैयार करके महंगे दामों पर बेचते रहे।
विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार मेसेनरी स्टोन की रॉयल्टी 35 प्रति टन है जबकि ग्रेनाइट की रॉयल्टी 250 प्रति टन है। जानकारों की माने तो पूरे इलाके में चलने वाली खदानों से अब तक लोग लाखों टन पत्थर निकल चुके हैं जिसके रॉयल्टी के फर्क को यदि देखें तो सरकार को करोड़ों का चूना लग चुका है।