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jaipur पायलट के विरोध में किस हद तक जाएगा गहलोत गुट?:विवाद बढ़ा तो विधानसभा भंग भी हो सकती है, आजाद से तुलना का जवाब गद्दार

 
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जयपुर न्यूज़ डेस्क,  50 साल के राजनीतिक करियर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का एक नया रूप देखने को मिल रहा है. साल 2020 में पायलट खेमे की बगावत के बाद उन्होंने पहली बार अपने धुर विरोधी सचिन पायलट पर खुलकर हमला बोला है. इस हमले के साथ ही राहुल गांधी के राजस्थान दौरे से 10 दिन पहले गहलोत ने सियासी खींचतान का एक नया अध्याय शुरू कर दिया है.अभी तक गहलोत के समर्थक विधायक और मंत्री पायलट पर हमले पर बोल रहे थे, अब खुद गहलोत ने उन पर मुहर लगा दी है. गहलोत ने 25 सितंबर को समर्थक विधायकों की बगावत को क्लीन चिट देकर अपनी ही राजनीतिक लाइन साफ ​​कर दी है। इससे आलाकमान के फैसले पर भी सवालिया निशान लग गया है।25 सितंबर को विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करने से जो स्थिति पैदा हुई थी, कांग्रेस अब दो महीने बाद वापस आकर वहीं खड़ी हो गई है. गहलोत ने धमकी भरे लहजे में साफ संकेत दिया कि पायलट को अब किसी भी रूप में नेतृत्व का पद नहीं लेने दिया जाएगा. गहलोत और पायलट खेमों के बीच खींचतान की यही सबसे बड़ी जड़ है.

राजनीतिक जानकार राहुल के दौरे से पहले गहलोत के धमाकेदार इंटरव्यू को एक बड़े संदेश के लिए सोची समझी रणनीति मान रहे हैं. पायलट पर हमले की टाइमिंग और राजनीतिक लाइन साफ ​​होने के बाद अब कांग्रेस में टकराव बढ़ना तय है.गहलोत ने पहली बार विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करने के समर्थक विधायकों के कदम का खुलकर समर्थन किया है और इसे पायलट के खिलाफ बगावत करार देते हुए एक नई लड़ाई का ऐलान किया है. अभी तक गहलोत बैठक के बहिष्कार पर नपे-तुले जवाब देते थे. अब गहलोत ने आलाकमान की राय के खिलाफ जाकर इस घटना के बाद लिए गए फैसलों पर सवाल उठाने वाले विधायकों-मंत्रियों का खुलकर बचाव किया है.गहलोत के इस बयान से साफ संकेत मिल रहा है कि उन्होंने 25 सितंबर की घटना को लेकर अपने समर्थक नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने की चेतावनी दी है. उस घटना को पायलट के खिलाफ बगावत बताकर उसे जायज ठहराने का मतलब है कि जरूरत पड़ी तो खुला टकराव भी हो सकता है.