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Chittorgarh मोतियाबिन्द सर्जरी में अब काले नहीं, पारदर्शी चश्मे से ही चल जाएगा काम

 
Chittorgarh मोतियाबिन्द सर्जरी में अब काले नहीं, पारदर्शी चश्मे से ही चल जाएगा काम
चित्तौड़गढ़ न्यूज़ डेस्क , चित्तौड़गढ़ मोतियाबिंद सर्जरी के क्षेत्र में बीते तीन दशक में तकनीकी प्रगति ने इसे पूरी तरह बदल दिया है। अब आंखों का ऑपरेशन पहले की तरह मुश्किल नहीं रहा। रोगी ऑपरेशन थियेटर में जाता है और ऑपरेशन करवाकर सामान्य रूप से बाहर आ जाता है। न कोई आंखों पर पट्टी बांधी जाती है और न ही खास परहेज करना पड़ता है। डे केयर सर्जरी में मरीज को केवल दो घंटे के भीतर अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है। सर्जरी के साथ ही चश्मे का रूप भी बदल गया है। काले चश्मे की जगह अब सादा पारदर्शी चश्मे ने ले ली है।

अब सर्जरी में नहीं लगाने पड़ते टांके

समय के साथ नई तकनीक ने मोतियाबिंद सर्जरी के को पूरी तरह बदल दिया है। छोटे चीरे वाली सर्जरी और लैंस प्रत्यारोपण ने न केवल सर्जरी को आसान बनाया। बल्कि, मरीजों की रिकवरी को भी तेज कर दिया। आज टॉपिकल फेकोइमल्सिफिकेशन और फोल्डेबल लैंस प्रत्यारोपण ने मोतियाबिंद सर्जरी को नई दिशा दी है। इन विधियों में 2.2 से 2.8 मिमी का छोटा चीरा लगाया जाता है, जिससे टांके की आवश्यकता नहीं पड़ती और मरीज को सर्जरी के कुछ ही घंटों में अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है। पहले जहां बड़े चीरे वाली मोतियाबिन्द सर्जरी के बाद एक माह तक हरी पट्टी या काले चश्मे पहनने की आवश्यकता होती थी। अब फेको सर्जरी से पारदर्शी चश्मों ने ले ली है। फोटोफोबिया (रोशनी से आंखों में तकलीफ) जैसी समस्याएं भी अब न्यूनतम हो गई हैं। आज भारत और विश्वभर में लाखों लोग हर साल मोतियाबिंद सर्जरी के जरिए अपनी दृष्टि वापस पाते हैं। भारत में हर साल लगभग 84 लाख और दुनियाभर में करीब 3.5 करोड़ मोतियाबिंद सर्जरी की जाती हैं। इन सर्जरी ने लाखों रोगियों को दृष्टिहीनता से छुटकारा दिलाकर उनके जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाया है।