ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को उत्तर भारत के कई राज्यों में वट सावित्री व्रत किया जाता है। यह व्रत पति की लंबी आयु और सुखी दांपत्य जीवन के लिए रखा जाता है। आइए आपको बताते हैं वट सावित्री पूजा की सही विधि-
इस दिन शादीशुदा महिलाएं निर्जला व्रत रखकर वट वृक्ष और देवी सावित्री की पूजा करती हैं। ये व्रत पति की लंबी आयु की कामना के लिए किया जाता है।
वट सावित्री पूजा के दिन सबसे पहले उठकर स्नान करें। इसके बाद साफ वस्त्र धारण करें। इस दिन सोलह श्रृंगार करना जरूरी माना जाता है।
चावल के आटे से तैयार पीठे में हल्दी मिलाकर तैयार कर लें और कच्चा धागा, पुए, फल, मिठाई आदि से थाली सजाएं और बरगद की पूजा के लिए तैयारी करें।
वट वृक्ष के नीचे एक जगह को साफ करें और सभी पूजन सामग्री को वहां अर्पित करें। पेड़ में सिन्दूर लगाएं। इसके बाद कच्चे धागे को बरगद के चारों तरफ घुमाते हुए इसकी 7 या 11 परिक्रमाएं करें।
बरगद के वृक्ष के पास सत्यवान एवं सावित्री की मूर्ति स्थापित करें। अब धूप, दीप, रोली, सिंदूर से पूजन करते हुए श्रृंगार की सामग्री और फल आदि अर्पित करें।
पूजन के समय खरबूजा अर्पित करें। बांस के पंखे से सत्यवान-सावित्री को हवा करें और बरगद के पत्ते को अपने बालों में लगाएं।
इसके बाद वट वृक्ष के नीचे बैठकर कथा सुनें। बरगद के वृक्ष में चावल के पीठे से आकृतियां बनाएं और उसमें सिंदूर का टीका लगाएं। बरगद के फल के साथ 11 भीगे हुए चने पानी के साथ घूंटें और पति की दीर्घायु की कामना करें।
आप भी इस शुभ मुहूर्त में इस विधि से पूजा कर सकती हैं। स्टोरी अच्छी लगी हो तो लाइक और शेयर करें।